Thursday, June 23, 2011

बाहर मेघ बरसें, भीतर बरसे नैन...

बाहर मेघ झमाझम बरसे
मन भी मेरा बिरहा में तरसे
दिल पर उदासी के बादल ऐसे छाए
के आँखों की बारिश से दामन भीगा जाए...

पहली बारिश होते ही हर बार
ढह जाए जाने क्यों अतीत-वर्त्तमान के बीच की दीवार
यादों का सैलाब मुझे खींच ले जाए
और तड़पता छोड़ दे मुझे मझधार...

तभी तो ये बावरा मन
हर बारिश में बौराए
पिया की याद सदा ही मुझपर
दर्द घना बरसाए...

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