कुछ खो गया है अंदर का
ढूंढ रही हूं मैं अरसे से
मन कस्तूरी बन है भटका
नैन मचल रहे हैं तरसे से
बंजर धरती कैसे बताये
क्यों लगते बादल बरसे से
भीतर घना अंधेरा छाया
बाहर फैली है रौनक, चारो ओर चलते जलसे से
ढूंढ रही हूं मैं अरसे से
मन कस्तूरी बन है भटका
नैन मचल रहे हैं तरसे से
बंजर धरती कैसे बताये
क्यों लगते बादल बरसे से
भीतर घना अंधेरा छाया
बाहर फैली है रौनक, चारो ओर चलते जलसे से