Monday, May 30, 2011

मैं....


मेरा वजूद मेरी ही नज़रों से ओझल हुआ जाता है
कुछ इस कदर खुद ही में गुमशुदा हूँ मैं...

कभी कभी सोचती हूँ की उन गैरों से मेरा क्या नाता है
जिनके जाने से थोड़ी ग़मज़दा हूँ मैं...

बरसों इश्क की वादियों में जो गूंजती रही
इश्क की ऐसी ही सदा हूँ मैं...

मेरे राज़ कुछ ऐसे नहीं के ज़माने में बयां हो जाएँ
कोई और नहीं खुद अपनी राजदार हूँ मैं...

Saturday, May 28, 2011

वह सुबह फिर आएगी

घोंसलों में छिपी चिडिय़ा
बाहर निकलकर चहचहाएगी
मुर्गे की बांग दूर से सुनकर
मां किवाड़ खोल मुस्काएगी

आदित्य के तेज के आगे
सयाह रात थर्राएगी
अंधियारे पर लहराने विजय पताका
वह सुबह फिर आएगी...

भोर की लालिमा देखकर पंछी
दाना-पानी लेने जाएंगे,
निश्चित व निर्भय होकर वे
अपनी मंजिल को पाएंगे...

रात के अंधियारे में पथिक
घबरा मत खोने के डर से
अंधेरा नहीं कर सकता तुझे
दूर अपनी मंजिल से...

कुछ देर ठहर और इंतजार कर
रात तो बस अब ढल जाएगी
मंजिल होगी नजरों के सामने
वह सुबह जल्द ही आएगी...

प्रेम ही जीवन है...

प्रेम दुख है, प्रेम कष्ट है
प्रेम हृदय का क्रंदन है
फिर भी मन का प्रेम के प्रति
मोह नहीं होता कम है..

अहसासों का है ये महासंगम
प्रेम ही सच्चा हमदम है...

दो पल खुशियां, फिर ढेरों गम
सदैव से चलता आ रहा यही क्रम
गुणी-ज्ञानी जन सबको पता है
फिर भी वे उलझे इस भ्रम में

ढाई आखर का यह पोथी
सब पढऩा चाहें जीवन में...

जानूं मैं भी अंदर हैं कांटे
दूर से दिखते इस मधुबन में
पग-पग की बाधा पार करना
आसान नहीं है इक क्रम में..

लेकिन इसके बिना कुछ नहीं है पूरा
यह भी जानूं, प्रेम से ही संपूर्ण जीवन है...

Tuesday, May 24, 2011

सरपट भागती जिंदगी

जिंदगी की सरपट दौड़ में
मन करता है कि कहीं दो पल रुक जाऊं
और झांक लूं थोड़ा सा अतीत के झरोखे में
छिपी है जहां मेरे बचपन की मस्ती
अल्हड़ और महकता यौवन

उस झरोखे से सुनाई देते हैं मुझे
बहन के प्यार भरे उलाहने
दिखाई देती है मेरी छोटी सी ख्वाइश को भी
शिद्दत से पूरी करने की उसकी लगन

कहीं दूर से यादों का गुबार भी
उठता सा नजर आता है
प्यार की खुशबू तो महसूस होती है
मगर नजर कुछ भी नहीं आता है

इस झरोखे से बहुत कुछ
दिखता और सुनाई देता है
जो इस बात का सबूत है कि
इस दौड़ का हिस्सा बनने से पहले
कभी हम भी जिंदा हुआ करते थे...