Friday, November 29, 2013

गुलज़ार ज़िंदगी

ज़िंदगी कभी आर कभी पार चली जाती है
कभी यूँ  ही मझदार में बिछड़ जाती है

ख्वाबों से सजी लगती है ये दुल्हन मुझको
पलकों की कश्ती में सवार चली जाती है

अनगिनत रंगो का खज़ाना है ये
हर बार मुझे नए रंग में सराबोर कर जाती है

मैं चाहती हूँ ज़िंदगी को बहार कि तरह
वो जब भी आती है तो फ़िज़ा गुलज़ार कर जाती है...