Wednesday, July 6, 2011

वो अजनबी...

वो अजनबी जाने क्यों बहुत
जाना-पहचाना सा मालूम होता है...

जो भीड़ में चलते वक्त
मेरी बगल से टकराता हुआ सा निकला था...

यूं तो मैंने उसे ·भी देखा नहीं था मगर
उसकी खुशबू भी कुछ पहचानी सी लगी मुझे

आज भी जब आंखें बंद करती हूं अपनी
तो न जाने क्यों एक चेहरा उभर आता है

लगता है जैसे वो ऐसा ही तो दिखता था...

वो अजनबी कहीं और कभी दिखा नहीं मुझको
और ना ही कभी वैसा कोई और चेहरा नजर आया

मगर सांस लेने पर वही खुशबू मुझे
आज भी ताजा कर जाती है

ऐसा लगता है जैसे जन्मों से इसी खुशबू से
वर्चस्व मेरा महकता था...

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