कुछ उदासी के बादल छंटे
जब आंखों से बरसात हुई
मन जाने क्यों डर सा गया
और घनी जब रात हुई
एक उमर गुजर सी गई
जब आखिरी बार उनसे बात हुई
उम्मीदों का दामन पकड़े हुए हैं
फिर भी लगता है जैसे हमारी मात हुई
मेरे अपने चल दिए
अपने अपने हमसफर के साथ
मेरा दिल अकेला चल दिया
और तन्हाई मेरे साथ हुई...
जब आंखों से बरसात हुई
मन जाने क्यों डर सा गया
और घनी जब रात हुई
एक उमर गुजर सी गई
जब आखिरी बार उनसे बात हुई
उम्मीदों का दामन पकड़े हुए हैं
फिर भी लगता है जैसे हमारी मात हुई
मेरे अपने चल दिए
अपने अपने हमसफर के साथ
मेरा दिल अकेला चल दिया
और तन्हाई मेरे साथ हुई...
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