कभी ऐसे तो कभी वैसे
मैं उसे बहुत मनाती हूं..
लेकिन फिर भी न जाने क्यों
हर बार जिंदगी मुझसे खफा हो जाती है...
कभी प्यार का खिलौना मांगती है वो
तो कभी पैसे की खुमारी चढ़ती है
मगर हर बार उसका दिल टूटने पर
मैं उसे रोने के लिए कंधा देती हूं
लाख जतन करती हूं कि वो
खुश रहे सदा मुझसे
लेकिन ज्यादा खुशी के लालच में वो
हर बार मुझे दगा दे जाती है...
हर बार घर लाती हूं उसे मैं
मगर उसे बागी होना पसंद है
उसकी बे सिर-पैर की चाहतें ना पूरी हों
तो वो मुझसे खफा हो जाती है...
मैं उसे बहुत मनाती हूं..
लेकिन फिर भी न जाने क्यों
हर बार जिंदगी मुझसे खफा हो जाती है...
कभी प्यार का खिलौना मांगती है वो
तो कभी पैसे की खुमारी चढ़ती है
मगर हर बार उसका दिल टूटने पर
मैं उसे रोने के लिए कंधा देती हूं
लाख जतन करती हूं कि वो
खुश रहे सदा मुझसे
लेकिन ज्यादा खुशी के लालच में वो
हर बार मुझे दगा दे जाती है...
हर बार घर लाती हूं उसे मैं
मगर उसे बागी होना पसंद है
उसकी बे सिर-पैर की चाहतें ना पूरी हों
तो वो मुझसे खफा हो जाती है...
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