Monday, November 21, 2011

हर रिश्ता ये कहकर दूर हो गया मुझसे
के तुझमे ताक़त है खुद को हौसला देने की....

मुझे किसी कंधे का सहारा ना मिला क्योंकि
सबको आदत थी मेरे कंधो का सहारा लेने की....
 

मैं वो पेड़ हूँ, जिसकी छाँव में मुसाफिर
घडी दो घडी सुस्ता लेते हैं...

मगर पेड़ किसी का हमसफ़र नहीं बनता...
सवेरा होते ही सबको जल्दी होती है मंजिल पर पहुचने की....

मेरा एक हिस्सा

मेरा एक हिस्सा तुझसे बिछडऩे के गम में सिसकता रहा लेकिन
दूजा तुझे सामने देखकर मुस्काता रहा....

तुझको खो देने का गम मुझे पागल करता रहा पर
तेरी मुस्कराहट देख सारा दर्द जाता रहा....

तेरी जुदाई के एक-एक पल में मौत मांगी मैंने
और तेरी एक झलक की खातिर मैं सांस लेता रहा...

मैं खत्म और खोखला हो गया था फिर भी
तेरे मांगने पर अपना आखिरी कतरा तक देता रहा...

मुझे मालूम था कि तू आगे बढ़ जाएगा छोड़कर मुझे
फिर भी तेरे कहने पर मैं शब भर जागता रहा...

तू मिराज था, तुझे तो धोखा देना ही था पर
मैं ये जानते हुए भी तेरे पीछे बेतहाशा भागता रहा...

अब खत्म सा हूं लेकिन थोड़ा नामो-निशां बाकी है मेरा
मुझे मालूम है के ये भी लुटा दूंगा तुझपर...

ये तय था कि तेरी खामोश अदा, बोलती आंखें
एक दिन मेरी जान यूं ही लेंगी दिलबर...

Saturday, November 19, 2011

(भोपाल के बड़े तालाब को समर्पित)

तुम बेहद खूबसूरत हो... विशाल, अथाह...
जब भी तुम्हे देखती हूँ तो 
तुम्हारे लिए मेरा प्यार और बढ़ जाता है
तुम्हारी गहराई... शांति से मेरी बातें सुनना 
और सबकुछ खुद में जज़्ब कर लेना
इन्ही खूबियों की वजह से मैं तुम्हे कभी 
छोड़ नहीं पाती... 
जब किसी और शहर जाती हूँ तो 
तुम्हारी कमी मुझे बेहद खलती है
मैं दुआ करती हूँ की तुमसे मेरा रिश्ता 
हमेशा यूँ ही बरक़रार रहे....

तुम इस पल आज हो

तुम इस पल आज हो, कल अतीत हो जाओगे
मैं आगे बढ़ जाउंगी और तुम मुझे रोक ना पाओगे...

जो गुज़र जाता है वो लौटता नहीं कभी
मुझे पता है की तुम भी लौटकर ना आओगे...

ये क्षण जो है मेरा है आगे भी एक नया सवेरा है..
तुम भी कल को आगे बढ़कर अपना क्षितिज बनाओगे..


प्रेम हम्रारे जीवन को कर गया सूना लेकिन
मुझे यकीन है तुम कल को किसी का जीवन सजाओगे 

मै भी भर लुंगी रीते मन को किसी के स्नेहिल उद्गारों से 
सुनहरे कल में जब हम मिलेंगे तो तुम मुझे पहचान न पाओगे...  

Monday, November 7, 2011

कुछ अधूरा सा...


कुछ ख्वाब अनछुए से, कुछ पल अन जिए से
कुछ लफ्ज अनकहे से, कुछ खत अधजले से

वो रात थी जगी सी, वो दिन थे नए से
अहसास अधजगे से, लब अधखुले से

ख्वाहिशें अधपकी सी, कुछ हक अन दिए से
वो प्याले पीछे छूटे, जो थे अन पिए से....

Thursday, November 3, 2011


मेरे दोष भी मेरे, उपलब्धि भी
मेरे भ्रम भी मेरे, बुद्धि भी।।

मेरे पाप भी मेरे और शुद्धि भी
मेरा पतन भी मेरा, वृद्धि भी।।

मेरी तपस्या भी मेरी, सिद्धि भी
दीन समय भी मेरा, समृद्धि भी।।

मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी...

सागर हूं मैं 
मेरा मंथन करता है समय
कभी विषाक्त हो जाती हूं
तो कभी धन-धान्य बरसाती हूं
मुझे विश्वास है कि एक दिन
मैं अमृत बन भी बहूंगी
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी...

सच्चा इंसान वही है...

गिरना, उठना, उठकर संभलना
संभलकर आगे बढऩा ही सही है
जो ऐसा कर पाए
सच्चा इंसान वही है...

भूल हुई मुझसे अनेक
पर अब भी संग है मेरा विवेक
राह नई जरूर है पर मंजिल वही है
जो निरंतर चलता जाए इंसान वही है....

उम्मीद टूटी है मगर,
हौसला बरकरार है
किनारे पर जरूर पहुंचेगा
जो अभी फंसा मझधार है

दूसरों की तरह ही
ऊपरवाले ने मेरी भी किस्मत लिखी है
जो उसपर भरोसा कर बढ़ता जाए
सच्चा इंसान वही है....

Wednesday, October 12, 2011

मुझे मत याद करना

मुझे मत याद करना और 
मुझे ना याद आना तुम...
कहीं टकरा भी जाओ तो 
मुझसे नज़रें ना मिलाना तुम...

मेरे परवाजों पर अब 
बंदिशें नहीं हैं बाकी
तुम्हारी डोर से बंधी थी कभी 
ये भी भूल जाना तुम

तुम्हारे जाने से भले ही 
दिल सूना हो गया है लेकिन
मुझे फिर दर्द देने कभी 
वापस ना आना तुम....

Thursday, September 29, 2011

मैंने तुम्हे माफ़ किया और भुला भी दिया
फिर भी तुम्हे माफ़ नहीं कर पाती और
तुम्हारी याद भी गाहे-बगाहे आ ही जाती है...

मैं खुश हूँ की तुम खुश हो मेरे बिना और
आगे बढ़ रहे हो जीवन में मगर,
मुझे बुरा लगता है की क्यों खुश हो मेरे बिना
और क्यों मुझे छोड़ आगे बढ़ रहे हो....

मैं भी निकल आई हूँ नई राहों पर
बहुत से नए पड़ाव भी पार किये मैंने
मगर एक सच ये भी है की आज भी मैं
खड़ी हूँ उसी जगह जहाँ तुम छोड़ गए थे...

तुम्हारी यादों से अब मुझे कोई वास्ता नहीं
ना ही याद करने की फुर्सत है मुझे
पर जब तुम्हारी याद आती है तो
ना जाने क्यों आंसू दर्द बनकर बहने लगते हैं.....

Wednesday, September 28, 2011

तेरे आगोश में सो लेने दे...

तेरी गोद में रखकर सिर
जी भरके रो लेने दे
कुछ पल मुझे सुकून से
तेरे आगोश में सो लेने दे...

सोचा था तुझे दूर होकर
मिलेगा कुछ चैन मुझे
तुझसे दूर जाने की कोशिश में
याद करता रहा मैं तुझे

पुरसुकून की तलाश में
भटकते हुए को खुद में डुबो लेने दे...
कुछ पल मुझे सुकून से
तेरे आगोश में सो लेने दे...

तुझे डर था जमाने की
रुसवाइयों से उम्र भर
कायर मैं भी रहा शायद
पकड़ न सका तेरा हाथ हिम्मत कर

मौत करीब खड़ी है मेरे
अब तो तेरा हो लेने दे
कुछ पल मुझे सुकून से
तेरे आगोश में सो लेने दे...

Thursday, September 22, 2011

मेरी जिंदगी...

कुछ खाली, खफा सी,
वो लगती बेवफा सी
ख्यालों में रहकर भी,
वो रहती जुदा सी

वो सपनों में जीती,
पर हकीकत में रीती
जो भी उसने है देखा,
बनी आप-बीती

वो अलग और अनूठी,
रहे खुशियों से रूठी
हजार सच्चाइयां है जाने,
पर लगती है झूठी

उसकी मंजिल तो साफ है,
मगर राहों में गंदगी है
कोई और नहीं है ये,
मेरी जिंदगी है...

Wednesday, September 14, 2011

उलझा हुआ सा कुछ

ना धूप का असर है, ना ठंड की लहर
रात कटती नहीं, जाने कब होगी सहर

सबकुछ धुंधला, धुआं धुआं
हर एक सपना अब तक अनछुआ

नम होते गिलाफ, वक्त अपने खिलाफ
कोई तो ओढ़ा दे गर्म जिस्म का लिहाफ

साज छेड़े है धुन, दर्द उनकी पुकार
याद आते हैं गुजरे हुए लम्हे बार-बार

दिल है थोड़ा निराश, प्यार उसकी तलाश
बुत को जिंदा करना चाहे संगतराश

कौन है वो दुश्मन जिसने छीना अमन-चैन
किसी तस्वीर की हकीकत ढूंढ़ते दो नैन...


कुछ है उलझा हुआ, किसी को सुलझने की आस
अतृप्त आत्माएं भटकती आसपास....

Tuesday, September 13, 2011

किसी का दर्द, किसी की सौगात

एक रुई का फाहा
हल्का हो ऊपर की ओर उड़ता रहा
आसमान तक पहुंचा तो
बादल बन गया...

जमाने की गंदगी से बच नहीं पाया
तो रंग उसका मैला हो गया
दर्द से आंख नम हुई उसकी और
वो बरसात बन गया....

आंसू उसके अमृत बनकर
जमीं पर बरसे, किया उसे तर
उसका गम आदमी के लिए
सौगात बन गया....

Saturday, September 10, 2011

अवसादित मन

विचलित हो, ना जाने क्यों
स्मृतियों के घने अरण्यों में
करता रहे विचरण
यह मेरा अवसादित मन...

ढूंढ़े प्रेम प्रगाढ़, झेले विचारों की बाढ़
कभी ना पूरे हो सकने वाले
सपनों पर करता रहे चिंतन
यह मेरा अवसादित मन...

ऋतुएं जब बदले रंग,
क्षण भर को रहे उमंग
किंतु तुरंत, अकारण ही करने लगे क्रंदन
यह मेरा अवसादित मन...

Tuesday, September 6, 2011

यायावर

बेफिक्र हस्ती, जिनपे छाई रहे मस्ती
चलते हैं जो अंजान राहों पर निडर
हां, वही कहलाते यायावर....

सबकी अपनी तलाश, वे न होते हताश
ना पाने की ख़ुशी और न ही खोने  डर
हां, वही कहलाते यायावर...

सोच उनकी प्रबल, उनको भाए नवल
जिनकी मंजिल हैं रास्ते, ना कि घर
हां, वही कहलाते यायावर...

Monday, September 5, 2011

रुका हुआ सा कुछ...

कहीं शाम ठहर सी गई है
कहीं रात ढलने लगी है....

कहीं उम्र सरपट है भागे
कहीं वक्त बढ़ता नहीं है...

कहीं लफ्ज अटके हुए हैं
कहीं आंखों ने बात कह दी है....

कहीं मंजिल है अगले कदम पर
कहीं मिराज़ों की कमी नहीं है...

कहीं शोर बहरा किए है
कहीं लंबी खामोशी सजी है...

कहीं नफरत देती है ज़ख्म और
कहीं मोहब्बत घाव भरने लगी है...

कहीं बाकी है कोहरे की चादर
कहीं धूप खिल सी उठी है....

Friday, August 26, 2011

बंद आँखों का जहाँ...


एक मुट्ठी धूप, पाव भर छांव
गीली सी सुबह, सपनों का गांव

ताजा-ताजा अरमान, सौंधी सी ख्वाहिशें
अरमानों के दरख्तों पर लदे फूलों की खुशबू

सपनों की फुहार से गीली होती
मन की कच्ची मिट्टी...

मुझे ला दो कहीं से
एक चादर धुली सी, एक आसमां खुला सा....

Thursday, August 18, 2011

वो मेरा आज नहीं है

वो मेरा आज नहीं है और कल भी नहीं
मेरी परेशानियों का वो कोई हल भी नहीं

जिंदगी की किताब का एक पन्ना है वो
ख्वाहिशों की छांव में जन्मा सपना है वो

मेरे बस में नहीं उसको मैं दरकिनार करूं
लेकिन कोई अस्तित्व नहीं उसका जिसे स्वीकार करूं

कभी लगता है कि मेरा सरमाया है वो
तन्हाइयों में जो साथ रहे, ऐसा साया है वो

कोहरे की मोटी चादर से छनकर आता अक्स है वो
मैं उसे जानती नहीं मगर, पहचाना सा शख्स है वो

Wednesday, August 3, 2011

अहसास है वो....

सच से उसका
कोई वास्ता नहीं
मेरे मन से उत्पन्न
कयास है वो...

कोई और होता तो
छोड़ दिया होता मैंने
मगर मुझे जीवित रखने वाला
निश्वास है वो....

अकेले नहीं रहने देता
वो काफिर मुझे
सदा मेरे साथ रहने वाला
आभास है वो....

सब कहते हैं
निराधार है मेरी आशा
मगर मन की नींव में जमा
विश्वास है वो...

लाख चाहूं पर
अतृप्त ही रहता मन
अधूरी सी प्यास का
अहसास है वो...

तुम वेग मै बांध सखा...

तुम बहती धारा थे
प्रबल, सशक्त, कहीं न रुकने वाली

मैं रोक लेना चाहती थी तुम्हें
सदा के लिए अपने पास

सो बांध बन बिछ गई मैं
तुम्हारी राहों में कुछ इस कदर

के तुम मुझे लांघकर जा न सको
और रह जाओ सदा के लिए मेरे संग ही...

तुम कुछ दिनों तक शांत से रहे मेरे संग
बिताए हमने चंद खुशनुमा पल एक साथ

फिर तुम्हारा आवेग बढ़ा और आगे बढऩे को
लालायित हो एक बार फिर तुम प्रबल हो उठे

उद्दिग्न हो तुम मुझे तोड़कर आगे बढ़ चले
फिर कभी ना लौटकर आने के लिए...

और मै टूटकर बिखर गई 
तुम्हारी राहों में सदा के लिए...

Thursday, July 28, 2011

कभी-कभी...

कभी-कभी खलती है मुझे

एक कांधे की कमी
जिसपर सिर रखकर रो सकूं...

एक जोड़ी पनीली आंखों की गहराई
जिनमें खुद को डुबो सकूं...

सदियों से नहीं मिला मुझे

एक सीने का सहारा
जहां सुकून से दो पल सो सकूं...

एक बाहों का घेरा जहां
खुद को सुरक्षित कर निश्चिंत हो सकूं...

वो हाथ जिसे थामकर
आने वाली ज़िन्दगी के सपने संजो सकूँ... 


कोई ऐसा दिखाई नहीं देता

जिसको पाने की चाहत में
मैं खुद को खो सकूं...

न जाने कहां चली गई वो मुस्कान
जिसे देखकर मैं तरोताजा हो सकूं....

तन्हाई मेरे साथ हुई...

कुछ उदासी के बादल छंटे
जब आंखों से बरसात हुई

मन जाने क्यों डर सा गया
और घनी जब रात हुई

एक उमर गुजर सी गई
जब आखिरी बार उनसे बात हुई

उम्मीदों का दामन पकड़े हुए हैं
फिर भी लगता है जैसे हमारी मात हुई

मेरे अपने चल दिए
अपने अपने हमसफर के साथ

मेरा दिल अकेला चल दिया
और तन्हाई मेरे साथ हुई...

Wednesday, July 27, 2011

नैनों की गागर

नैनों की गागर जब भर जाए
अंसुअन के मोती छलक जाएं

इनके संग बहे दर्द जिया का
संदेसा नहीं आवत पिया का

अब कौन कांधे संग बांटू मैं पीर
मोरा कान्हा छोड़ गया मोहे नदिया के तीर

वहीं बाट जोहूं और अंसुअन मैं बहाऊं
पर कान्हा के बिना अब घर न जाऊं...

Monday, July 25, 2011

कुछ तो है जो खो गया है...



यूँ तो सभी कुछ मेरे पास है लेकिन 
कुछ तो है जो खो सा गया है...

इस बात का जवाब तो मेरे पास भी नहीं
की क्या है वो जो मेरे साथ नहीं...
किसी के साथ की कमी है ये या फिर
मेरा वक़्त कुछ सो सा गया है....
लोगो से घिरे रहते हैं हम यूँ तो
पर अपना साया ही ग़ुम हो सा गया है...

वहां तक तो किसी की नज़र भी नहीं जाती
जहाँ वो शख्स अभी रोकर गया है...
मैंने कभी किसी को बद्दुआ तो नहीं दी
फिर क्यों कोई बिछड़ा हुआ परेशां सा हो गया है 

शायद उसकी हंसी ही है जो गायब है
कहीं वो मुझसे जुदा होकर खामोश से हो गया है....

तुम्हारी याद...


सावन की रिमझिम फुहार सी है तुम्हारी याद
जो कुछ ऐसे बरसती है मेरे प्यासे मन पर
कि बाहर कुछ बहता नहीं है और
अंदर सब जज्ब होता चला जाता है...

तुम्हारी याद कभी तेज़ बारिश भी बन जाती है
जब मन की नदी भर जाती है तुम्हारी याद से
तो सारे बांध तोड़ते हुए यह याद
आंखों से बरसने लगती है बेतहाशा...

और कभी यही याद इतनी मूसलाधार हो जाती है
के मुझे अपने साथ अतीत के भंवर में बहा ले जाती है
जहां मैं डूबती-उतरती रहती हूं, तब तक
जब इन यादों के काले बादलों को चीरकर उम्मीदों का नया सूर्य नहीं चमकता....

Tuesday, July 19, 2011

ज़िन्दगी की बदली राहें

कहाँ से गुज़रते हुए ये
कहाँ आ गई ज़िन्दगी
आवारा सी बेपरवाह होकर
अनजान राहों पर भटकते हुए..

जहाँ कभी सरपट से
आगे बढ़ जाते थे हर मक़ाम से
वहीँ अब गुज़रना पड़ता है
रुक कर, अटकते हुए..

हम बड़े हो गए लेकिन
दिल तो नादाँ ही रहा
इसकी आदत ना गई
दिल्लगी करने की बहकते हुए...

झरनों सी आदत है
गिरकर बिखर जाने की
हम ना बन पायेंगे दरिया से
जो चलता है खामोश सरकते हुए..

वो शख्स

कुछ लटें ढुलक आती हैं चेहरे पे उसकी
जब हया से उसका सिर झुक जाता है...
उस पल को धडकनें तेज़ हो जाती हैं और
कभी ना थमने वाला वक़्त भी रुक जाता है...

ऐसा नहीं के वो बेपनाह हुस्न का मालिक है
बस खुद पे सादगी को ओढ़े रहता है...
लब खामोश रहते हैं अक्सर उसके
निगाहों से वो औरों को खुद से जोड़े रहता है...

हर तरफ उसके
एक सुकून सा बिछा रहता है
एक अलग कशिश सी है उसमे
जो हर शख्स उसकी ओर खिचा सा रहता है...

उसके होने से गोशे गोशे में
रौनक सी हो जाती है
मेरी परेशानियाँ भी उन पलों में
ना जाने कहाँ गुम सी हो जाती हैं...

Wednesday, July 6, 2011

मेरी तकलीफ सुनो यारों...

मुज़तरिब हूं, ऐसे ना परेशां करो यारों
मेरे दर्द को समझो, थोड़े तो मेहरबां बनो यारों...

मेरी आशिकी ने जख्म बड़े दिए मुझको
उन जख्मों को तुम अब ना कुरेदो यारों...

इज़तेराब ये है के उसे ख्याल नहीं मेरे जज्बातों का
मेरी इस तकलीफ की कुछ तो दवा करो यारों ...

तल्खी है उसके लफ्ज़ों में, नज़रों में हिकारत है
मेरे पाक इरादों को उससे बयां करो यारों...

उन्हें लगता है कि हम दिल्लगी सी करते हैं
अपनी संजीदगी का अहसास कैसे उसे दिलाऊं यारों...

लगता है के मेरी मौत ही से यकीं आएगा उनको
मेरे जनाज़े को उनके झरोखे के नीचे से ले जाना यारों...

हर बार क्यों खफा होती है जिंदगी?

कभी ऐसे तो कभी वैसे
मैं उसे बहुत मनाती हूं..
लेकिन फिर भी न जाने क्यों
हर बार जिंदगी मुझसे खफा हो जाती है...

कभी प्यार का खिलौना मांगती है वो
तो कभी पैसे की खुमारी चढ़ती है
मगर हर बार उसका दिल टूटने पर
मैं उसे रोने के लिए कंधा देती हूं

लाख जतन करती हूं कि वो
खुश रहे सदा मुझसे
लेकिन ज्यादा खुशी के लालच में वो
हर बार मुझे दगा दे जाती है...

हर बार घर लाती हूं उसे मैं
मगर उसे बागी होना पसंद है
उसकी बे सिर-पैर की चाहतें ना पूरी हों
तो वो मुझसे खफा हो जाती है...

वो अजनबी...

वो अजनबी जाने क्यों बहुत
जाना-पहचाना सा मालूम होता है...

जो भीड़ में चलते वक्त
मेरी बगल से टकराता हुआ सा निकला था...

यूं तो मैंने उसे ·भी देखा नहीं था मगर
उसकी खुशबू भी कुछ पहचानी सी लगी मुझे

आज भी जब आंखें बंद करती हूं अपनी
तो न जाने क्यों एक चेहरा उभर आता है

लगता है जैसे वो ऐसा ही तो दिखता था...

वो अजनबी कहीं और कभी दिखा नहीं मुझको
और ना ही कभी वैसा कोई और चेहरा नजर आया

मगर सांस लेने पर वही खुशबू मुझे
आज भी ताजा कर जाती है

ऐसा लगता है जैसे जन्मों से इसी खुशबू से
वर्चस्व मेरा महकता था...

Monday, June 27, 2011

वो लड़की कहां खो गई...

जिंदगी के सफर के
इस पड़ाव पर आकर सोचा
थोड़ा ठहर लूं मैं
और आराम फरमा लूं जरा

एक जगह छांव में बैठकर
सुस्ताते हुए सोचा के
इस बहाने नफा नुकसान भी
जोड़ लूं जिंदगी का

देखा तो बहुत पाया था
बचपन के दौर में मैंने
दोस्त, साथी, हमसफर और
परिवार के साथ तय किया मैंने वो सफर

कदम जवानी के दौर में
जब रखा मैंने लापरवाही से
तो सोचा भी न था कि
बहुत कुछ जल्द बदलने वाला है

अचानक देखा तो जिंदगी का मौसम
रुख बदलने लगा था
तेज हवाओं के उस मौसम ने
मेरे अंदर की नमीं चुरा ली थी

यहीं नहीं रुका मौसम का खिलवाड़
आंधी-तूफानों और झंझावतों ने
मेरे निश्छल और नाजुक मन को
बिल्कुल दिया उजाड़

रही सही कसर कहीं
आगे पूरी हो गई
और मेरे अंदर रहने वाली लड़की
न जाने कहां खो गई....

थोड़ा वक्त अपने साथ गुजार लूं

आंखें बंद कर जरा देर
बीते वक्त को निहार लूं
जी करता है आज थोड़ा वक्त
अपने साथ गुजार लूं...

पलों में कैद है जिंदगी और
जिंदगी चंद पलों में बीत जाती है
जो पल छूट जाते हैं हमसे
याद उनकी बड़ा सताती है...

उन यादों पर चढ़ी धूल को
जरा सा मैं बुहार लूं
जी करता है आज थोड़ा वक्त
अपने साथ गुजार लूं...

जो चेहरे कभी बेहद प्यारे थे हमें
आज सिर्फ उनकी परछाई नजर आती है
न जाने क्यों उन चेहरों की याद
वक्त के साथ धुंधली पड़ती जाती है

उन चेहरों की तस्वीरें
अपने दिल में उतार लूं
जी करता है आज थोड़ा वक्त
अपने साथ गुजार लूं...

Thursday, June 23, 2011

ये इश्क वो बला है...

अफसाने हकीकत में बदल जाते हैं
जब प्यार में दीवानापन शुमार होता है
आशिक और माशूक एक-दूजे में ढल जाते हैं
जब दोनों पे चढ़ा इश्क का खुमार होता है...

यूँ तो लगते हैं सभी खुश जब इश्क होता है
लेकिन सब जानते हैं की इसमें दिल बीमार होता है
दुनिया बदलने की फिराक में रहते हैं ये जोड़े
इनपर एक किस्म का जूनून सवार होता है...

भूला बिसरा भी आ जाता है राह पर
जब उसे इश्क का बुखार होता है...
ये वो बला है जो लगे तो
यार पर तन मन धन सब निसार होता है...

बाहर मेघ बरसें, भीतर बरसे नैन...

बाहर मेघ झमाझम बरसे
मन भी मेरा बिरहा में तरसे
दिल पर उदासी के बादल ऐसे छाए
के आँखों की बारिश से दामन भीगा जाए...

पहली बारिश होते ही हर बार
ढह जाए जाने क्यों अतीत-वर्त्तमान के बीच की दीवार
यादों का सैलाब मुझे खींच ले जाए
और तड़पता छोड़ दे मुझे मझधार...

तभी तो ये बावरा मन
हर बारिश में बौराए
पिया की याद सदा ही मुझपर
दर्द घना बरसाए...

Tuesday, June 21, 2011

खुदा मेरा भी है यारों...


ऐसा हो नहीं सकता के दुनिया में
हर कोई दिल्लगी करके, फिर दगा देगा
खुदा मेरा भी है यारों
मुझे ऐसे न सजा देगा

वो पत्थर की मूरत है
मगर उसमें दिखती मां की सूरत है
वो जानता है के मुझको
कब उसकी जरूरत है

ऐसा नहीं है के मैं रोऊं
तो वो देखकर मजा लेगा
खुदा मेरा भी है यारों
मुझे ऐसे न सजा देगा

परखता है वो यूं ही मुझको
मेरी ताकत से वो वाकिफ है
मगर मैं लडख़ड़ाऊं तो
होती उसको भी तकलीफ है

मेरी भी जीत जब होगी
तो मुझको गले लगा लेगा
खुदा मेरा भी है यारों
मुझको ऐसे न सजा देगा

कुछ सांसें अब भी बाकी हैं....

इस दिल की वीरानियों में
आबाद होने का जुनूं बाकी है
के तुम लौटोगे फिर इक दिन
यही सोचकर इसमें कुछ सुकूं बाकी है

हमारे सपनों का वो घर
टूट के बिखर जाता मगर
जालों की हिफाजत में
अब भी खड़ा है वो सिर ऊंचा कर

ये घर बसेगा इक दिन
यह आरजू अब भी बाकी है

मेरे आसपास आज जो हैं
खुश हैं और आबाद भी वो है
मेरी वीरानियों में मगर तुझसे मिलने की
जुस्तजु अब भी बाकी है

तेरे मिलने की ख्वाहिश की खातिर
कुछ सांसें अब भी बाकी हैं....

तेरी आंखों का वो सुरमा

तेरी आंखों का वो सुरमा
अंधियारी रात के जैसा
जो फैला तो दिन में भी
जैसे रात हो गई

इन आंखों की नमीं देख
बादल भी पिघल गए
बदला यूं मौसम की
बरसात हो गई

ये आंखें भी हैं अजीब
जो मुझसे बात करती हैं
तू जब भी देखे पलट मुझको
तो तुझसे बात हो गई

दिल चाहता है बस यही
कि तेरी आंखों में भी चमक हो
ये उसका भी दिल जीतें
जिससे मात हो गई...

बेलगाम ख्वाहिशें...

उमड़ते बादलों को देखकर
मन में घुमड़ उठती हैं ख्वाहिशें भी
इस रुमानी मौसम में
कोई गले लगाता हमको भी

सुलग उठते हैं वो अरमां
जो ठंडे थे कई बरसों से
सालों के वो बंधन
खुलने लगे हैं कल-परसों से

मैं खुद से हार जाती हूं
मगह अहसास जीत का होता है
उन्मुक्त हो मेरा मन जब
रंगीन सपने संजोता है

डर लगता है इन सपनों से
मगर दिल कब ये सुनता है
हजारों ख्वाहिशों का ये तो
ताना-बाना बुनता है...

Monday, June 20, 2011

अनोखा प्यार...

इक रोज गजब बड़ा
यार हो गया
एक आशिक को मुजस्समे से
प्यार हो गया

जिस रोज उसे देखा,
वो देखता ही रह गया
कुछ समझ न पाया क्यों
दिल उससे लग गया

खुद भी समझ न पाया वो
यूं दिल पे किसका इख्तेयार हो गया
उसकी कशिश में क्यों बंधा
क्यों उससे प्यार हो गया

संगमरमर के उस बुत में
कुछ बात ही अलग सी थी
जो दिल को छू जाए
मासूमियत कुछ ऐसी उसमें थी

उस मासूमियत ने उसे यूं छुआ
कि वो ज़ार ज़ार हो गया
और वो संभल न सका
उसे उससे प्यार हो गया...

दिल बना परवाना

कुछ कहने को हरदम मचलता है
जिस राह रोकूं, उस राह पर ही चलता है
कितना भी संभालूं, अब नहीं संभलता है
दिल मेरा अब परवाना बनके जलता है....

बंदिशों में रहकर बागी हो गया है
बंद ताले से निकलकर ये कहीं खो गया है
पत्थर था, न जाने किस अहसास से ये गलता है
दिल मेरा अब परवाना बनके जलता है...

तन्हा रहता था, कोई शोर भी ना करता था
छोटी-बड़ी हर चोट से ये डरता था
मगर अब न जाने क्यों संभाले नहीं संभलता है
दिल मेरा अब परवाना बनके जलता है...

मौसम का जादू...

ये मौसम की नजाकत है या कुछ और
के दिल में जागे हैं अरमां कुछ नए से...

यूं तो हर बात कही सुनी है हमने मगर
कुछ जज्बात अब भी हैं अनकहे से...

कभी ऐसा भी था कि जबां रुकती न थी अपनी
अब लरजने लगे हैं होंठ कुछ भी कहने से...

पलकों को उठाने की हिम्मत नहीं होती
इनमें बंद हैं चंद हसीं ख्वाब नए से..

कुछ ऐसा जादू किया है फिजाओं ने हम पर
लोग कहते हैं कि हम भी लगे हैं कुछ बदलने से...

Wednesday, June 15, 2011

उस रोज़ कहा था तुमने

उस रोज़ कहा था तुमने 
धीरे से मेरे कानो में..
के एक दिन हम भी बनायेंगे 
एक आशियाना, पहाड़ों में....

दिन भर की मेहनत कर 
पहुचेंगे जब उस घर
मिलेगा वो सुकून हमको
जो मिलता नहीं अक्सर दूजे ठिकानों में...

तुम्हारे हाथ की कॉफ़ी
बनेगी और भी मीठी 
और अपनी रसोई भी
महकेगी पकवानों से...

ये सपने जो हैं सारे
बंद है आँखों में हमारे
आज भी देख लेते हैं
हम इन्हें रात के वीरानो में...

कभी कभी सोचती हूँ

कभी कभी सोचती हूँ के
गर अँधेरा अगर नहीं होता...
तो सूरज की अहमियत शायद
कोई नहीं समझता...
महरूम रह जाते सब
चांदनी के सुकून से
और जुगनू की चमक में
दिल मेरा नहीं खोता...

कभी कभी सोचती हूँ के
गर अँधेरा नहीं होता...
तो प्यार का वो अनोखा रंग
कहीं छुप जाता दिन के उजाले में
सुनहरी धुप तो मिलती
मगर तारे नहीं सजते आसमा के शामियाने में...
और कई सपने भी आँखों में 
कतरा जाते आने से...

जुदा लगते हैं रात और दिन
मगर वो एक दूजे के बिन अधूरे हैं 
दोनों की अपनी अहमियत है..
ज़िन्दगी में जिनकी ये दोनों हैं, वही पूरे हैं...

बारिश में मचलती ख्वाहिशें...


बदरा की गरजती बरसती धुन पर
थिरकती बरखा की बूँदें...
टपरों पर पड़ती उनकी थाप से उठता संगीत...
और इन् सबके साथ ताल मिलाने की हूक....

काश इस मौसम का मज़ा घर पर बैठकर नहीं 
बल्कि सड़कों पर घुमते हुए लिया जा सकता...
वहीँ बड़े तालाब के किनारे खड़े होकर या फिर
VIP रोड पर किसी का हाथ थामे टहलते हुए...

रिमझिम बारिश में होती एक लॉन्ग drive
भुट्टे की महक और बातों की लम्बी झड़ी...
कहीं रुक कर करते हम भी रेन डांस
और हम भी महसूस कर सकते इस मौसम का रोमांस..

तुम्हारी याद आती है...


अनजान राहों पर, चलते हुए यूँ ही
तुम्हारी याद आती है....
सड़क के किनारे पर, लगी उस बेंच को देखकर
तुम्हारी याद आती है...

मैं खड़ी थी फाटक पर, गई जब रेल गुज़रकर
तो याद आ गया मुझको, तेरे साथ का सफ़र...
उस सफ़र की यादें, गाहे बगाहे आ ही जाती हैं
मुझको बड़ा सताती हैं...

कभी लौटेंगे वो दिन भी
अभी उम्मीद है बाकी
दिल यही कहता है बार बार
जब भी तुम्हारी याद आती है...

Saturday, June 4, 2011

सौंधी सी खुशबु...

कहीं दूर से सौंधी सी खुशबु आई है मुझे
लगता है के मौसम बदलने वाला है...

धुप के नश्तर अब ना चुभेंगे मुझको
वो जल्द ही बादलों की चादर में छुपने वाला है...

रिमझिम फुहारों से तर होगी ज़मीं...
मेरा तन भी मन भी तर होने वाला है...

इस बार धरती को प्यासी ना रखना ऐ खुदा...
हमें मालूम है के बारिश की शक्ल में तेरा प्यार बरसने वाला है...

ख़ुशी!!!

आज अपने नसीब पर इठलाने को जी चाहता है...
खुश हूँ इतनी आज, के मेरा गुनगुनाने को जी चाहता है...

दुआओं भरा एक दिन नसीब हुआ है मुझे भी...
इस दिन को दिल में कैद कर लेने को जी चाहता है...

कुछ अपने भूल गए होंगे शायद मुझे लेकिन
अब गैरों की दुआओं से घर बसाने को जी चाहता है...

सोचा था की अब कोई ना बदल पायेगा मुझे
पर दोस्तों के प्यार की खातिर बदलने को जी चाहता है...

Monday, May 30, 2011

मैं....


मेरा वजूद मेरी ही नज़रों से ओझल हुआ जाता है
कुछ इस कदर खुद ही में गुमशुदा हूँ मैं...

कभी कभी सोचती हूँ की उन गैरों से मेरा क्या नाता है
जिनके जाने से थोड़ी ग़मज़दा हूँ मैं...

बरसों इश्क की वादियों में जो गूंजती रही
इश्क की ऐसी ही सदा हूँ मैं...

मेरे राज़ कुछ ऐसे नहीं के ज़माने में बयां हो जाएँ
कोई और नहीं खुद अपनी राजदार हूँ मैं...

Saturday, May 28, 2011

वह सुबह फिर आएगी

घोंसलों में छिपी चिडिय़ा
बाहर निकलकर चहचहाएगी
मुर्गे की बांग दूर से सुनकर
मां किवाड़ खोल मुस्काएगी

आदित्य के तेज के आगे
सयाह रात थर्राएगी
अंधियारे पर लहराने विजय पताका
वह सुबह फिर आएगी...

भोर की लालिमा देखकर पंछी
दाना-पानी लेने जाएंगे,
निश्चित व निर्भय होकर वे
अपनी मंजिल को पाएंगे...

रात के अंधियारे में पथिक
घबरा मत खोने के डर से
अंधेरा नहीं कर सकता तुझे
दूर अपनी मंजिल से...

कुछ देर ठहर और इंतजार कर
रात तो बस अब ढल जाएगी
मंजिल होगी नजरों के सामने
वह सुबह जल्द ही आएगी...

प्रेम ही जीवन है...

प्रेम दुख है, प्रेम कष्ट है
प्रेम हृदय का क्रंदन है
फिर भी मन का प्रेम के प्रति
मोह नहीं होता कम है..

अहसासों का है ये महासंगम
प्रेम ही सच्चा हमदम है...

दो पल खुशियां, फिर ढेरों गम
सदैव से चलता आ रहा यही क्रम
गुणी-ज्ञानी जन सबको पता है
फिर भी वे उलझे इस भ्रम में

ढाई आखर का यह पोथी
सब पढऩा चाहें जीवन में...

जानूं मैं भी अंदर हैं कांटे
दूर से दिखते इस मधुबन में
पग-पग की बाधा पार करना
आसान नहीं है इक क्रम में..

लेकिन इसके बिना कुछ नहीं है पूरा
यह भी जानूं, प्रेम से ही संपूर्ण जीवन है...

Tuesday, May 24, 2011

सरपट भागती जिंदगी

जिंदगी की सरपट दौड़ में
मन करता है कि कहीं दो पल रुक जाऊं
और झांक लूं थोड़ा सा अतीत के झरोखे में
छिपी है जहां मेरे बचपन की मस्ती
अल्हड़ और महकता यौवन

उस झरोखे से सुनाई देते हैं मुझे
बहन के प्यार भरे उलाहने
दिखाई देती है मेरी छोटी सी ख्वाइश को भी
शिद्दत से पूरी करने की उसकी लगन

कहीं दूर से यादों का गुबार भी
उठता सा नजर आता है
प्यार की खुशबू तो महसूस होती है
मगर नजर कुछ भी नहीं आता है

इस झरोखे से बहुत कुछ
दिखता और सुनाई देता है
जो इस बात का सबूत है कि
इस दौड़ का हिस्सा बनने से पहले
कभी हम भी जिंदा हुआ करते थे...

Thursday, April 28, 2011

मुझे क्षितिज तक जाना है

सब कहते हैं वह मृग तृष्णा है
पर मैंने सदा उसे सच माना है
कितनी भी दूरी तय करनी पड़े
पर मुझे उसे बस पाना है

मुझे क्षितिज तक जाना है...

कठिनाईयों भरा होगा सफर
कांटों से भरी होगी लंबी डगर
किस्मत को भी साथ देने के लिए
किसी प्रकार मनाना है

मुझे क्षितिज तक जाना है

अंधकार भरी राहों में
कभी मन विचलित हो जाता है
दिशाएं भ्रम पैदा करती हैं
किस ओर बढूं समझ नहीं आता है

लेकिन मुझे अपने लक्ष्य से
आसान नहीं भटकाना है

मुझे क्षितिज तक जाना है...

आशाओं का बोझ

निर्भय होकर वही करो
जो करने को मन कहता है
यह ज्ञान मिला मुझे जीवन से
जो मेरे अंदर बहता है...

पर आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

कहां जाऊं किस ओर बढूं
मन की सुनूं या सूली चढूं
एक पथ चुनते ही दूजे का
क्रंदन सुनाई पड़ता है

आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

दोनों पथ एक दूजे की ओर
पीठ किए खड़े
मन कहता एक ओर चलूं
दूजे की सलाह देते बड़े

मैं उन्हें समझा न सकी
और न कोई मेरी बात समझता है
आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

समाज कहता मात-पिता की सेवा कर
वे कहते गूृहस्थी की गाड़ी चढ़
मेरे मन की व्यथा से मगर
किसी का दिल न दुखता है

आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

मन करता है स्वच्छंद रहूं
अपने मन का मीत चुनुं
तब तक जीवन चले वैसे ही
जिस गति से यह अब चलता है

पर आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

Thursday, April 21, 2011

इंतजार

तुम सामने रहते हो किसी अजनबी की तरह
और मैं ढूंढ़ती रहती हूं पुराने 'तुम' को

जो कभी मेरा था और मुझसे मोहब्बत करता था
वक्त कुछ ऐसा बदला कि तुम कोसों दूर चले गए

मेरी मोहब्बत में कोई कमी ना थी
और ना ही तुम बेवफा थे

फिर क्यों हमारे रास्ते इस कदर जुदा हो गए
कि अब उनके मिलने की गुंजाइश भी नजर नहीं आती

पर दिल जो अब भी तुम्हारे लौटने की आस लिए है
कहता है बार-बार मुझको

तुम्हें भी मुझसे बेपनाह मोहब्बत है
उसे यकीन है, इक दिन तुम जरूर लौट आओगे

ये दर्द तुमने दिया है तो...

ये दर्द तुमने दिया है तो कोई बात नहीं
आंसू कुछ बहे हैं तो कोई बात नहीं

तुम तो चैन से सोते होगे रातों को
यहां नींद उड़ गई है तो कोई बात नहीं

मेरी नजरें तो हमेशा ढूंढ़ती रहेंगी तुमको
जो तुमने नजरें चुरा लीं, तो कोई बात नहीं

मेरी फितरत में नहीं किसी के आगे झुकना
जो तुमने किया है मजबूर तो कोई बात नहीं

इश्क कहते हैं कि रोग बड़ा है बुरा
जो तुमने दिया है रोग तो कोई बात नहीं

 

लौट आओ ना

तुम ऐसे गए, जैसे जिंदगी में कभी आए ही नहीं थे
लेकिन दिल उन लम्हों को बार-बार याद करता है

जो दो पल हमने साथ गुजारे
उन्हें याद करके, वक्त बर्बाद करता है

मैं जानती हूं कि अब के जो गए हो तो वापस ना ओगो
लेकिन कमबख्त दिल मुझपे हंसता है

पगला है बेचारा, जो ये समझता है
कि तुम एक दिन जरूर लौट आओगे

मैं जानती हूं कि तुम़्हारी जिंदगी में
मेरी कोई भी अहमियत बाकी नहीं

लेकिन अपने पागल दिल की खातिर तुमसे इल्तजा करती हूं
अगर जो कभी मेरी मोहब्बतमें सच्चाई नजर आई हो

तो तुम उस मोहब्बत, उस यकीन, उस पुराने वक्त के लिए ही सही
मगर, लौट आओ ना...

Monday, March 28, 2011

इस दिल का क्या करूं?

जहां थोड़ा प्यार मिले
ये वहीं अटक जाता है
ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

बंजारों सा फिरता है
प्यार मिले तो गिरता है
जल्द रूठता है लेकिन फिर
जल्दी से ये मान भी जाता है

ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

एक प्यार भरी निगाह पाकर ये
शर्माकर झिझक जाता है
लेकिन एक जगह पर ये कमबख्त
कहां देर तक टिक पाता है

कांच का बना है छोटी सी बात पर
बहुत जल्द चटक जाता है
ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

Saturday, March 26, 2011

यूं तो मौसम उजला था

यूं तो मौसम उजला था
पर मन में सबकुछ धुंधला था

कोयल कूक रही थी बागों में
सब डूब रहे थे अनुरागों में
मैं ही केवल थी एक व्यथित
अवसादों से घिरी और ग्रसित

चाहकर भी मेरे अंदर का
मौसम अभी ना बदला था

एक रोज सुबह थी अलसाई
दूर एक किरण दी दिखलाई
उसने कुछ पल के लिए
मन में आशा की अलख जगाई

किंतु समय ने हर बार ही
मेरे मन को कुचला था

मैंने आज समय को जाना है
उसका क्रूर रूप पहचाना है
जो आज साथ है वह कल नहीं
इस बात को भी मैंने माना है

किंतु अतीत को पाने की
इच्छा से व्यक्तित्व कुछ दहला था
यूं तो मौसम उजला था
पर मन में सबकुछ धुंधला था...

Monday, March 21, 2011

बेरंग हुए रंग...


गुम हुईं ढेरों आशाएं
हीन हो गईं सभी दिशायें
रंग मिले सभी, बस मिला नहीं 
वो रंग जिससे
बेरंग मन भी रंग रंग जाये...!!!
बीत गई देखो ये होली
ख़त्म हुई सब हंसी ठिठोली
जिसके रंग में रंगने को
था आतुर मन
लौट के आया ना वह हमजोली...

Sunday, March 20, 2011

ये तेरा उपकार

प्रेम रंग मेरे जीवन में
कभी ना खिला था 
किन्तु तुमने उसे नए आयाम दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
तब कुछ दिन जीवन में उजियारा था
जब अस्तित्व पर प्रभाव तुम्हारा था
एक डूबती नौका का सहारा तुम बने
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
प्रेम नदी की हिलोरें देख 
मैं थोडा सा डर जाती थी
तब तुम कुशल तैराक से बन
मुझे खींच खींच ले जाते थे
तुमने मेरे मन से सभी डर दूर कर दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
एक लहर थी बड़ी निर्मोही
वो तुझे मुझसे दूर ले गई
लेकिन तुम जल्द लौटोगे,ये आश्वासन थे दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
तुम दूर थे लेकिन लहरों संग,सन्देश तुम्हारे आते थे
मेरे भयभीत मन को वे उत्साह से भर जाते थे
तुमने अनकहे ही मुझे, कुछ अधिकार थे दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
मैं प्रेम नदी में अकेले ही डूबती उतरती रहती थी
तुम्हारे ख्यालों से ही हरदम मैं खेलती रहती थी
लेकिन ना लौटोगे, ये तुम मुझसे कह ना सके 
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
एकदिन ऐसा भी आया जब तेरा सन्देश ना आया
मैंने तुम्हे ढूँढने की चेष्टा की, पर वैसा भी हो ना पाया
मझधार में तुम मुझे छोड़कर, किनारे जा खड़े हुए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
जब श्वासों ने भी छोड़ा साथ, 
तब समझ में आई ये बात
जिसे मैं प्रेम समझ बैठी थी
वह केवल एक खेल था तुम्हारे लिए..!
इस सीख की मैं आभारी हूँ
अब धोखा जीवन में ना खाऊँगी
मेरे अन्दर के सभी प्रेम दीप तुमने बुझा दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!!!

Monday, March 7, 2011

ये पानी...

ये पानी जब मेरी आँख से बहता है
तो दिल के ज़ख्मों को एक मरहम सा मिलता है
लोग इसे मेरी कमजोरी समझ लेते हैं
लेकिन इनसे मेरी ताकत को हौसला मिलता है

हर वक़्त ज़माने से लड़ते लड़ते
जब थक जाती हूँ मैं
यही वो पानी है जो सुकून देने के वास्ते
मेरे ज़ख़्मी रूह पर अब्र बनकर बरसता है

ये पानी धो देता है हर शिकवा शिकायत और गम
इस पानी से मेरा रूप और निखर उठता है
गंगा जल सा शुद्ध है ये पानी
जो मुझे लड़ने और बढ़ने की हिम्मत देता है...

Monday, February 7, 2011

तब और अब...


कभी पलकों में सपने रहा करते थे...
कभी हम भी हसरतें रखा करते थे...
कभी पुर्वाईयाँ कानो में कुछ कहती थीं...
कभी उमंगें नस नस में आग बनके बहती थीं...

आज ना जाने कहाँ खो गई वो हसरतें
कांच की किरचों से अब चुभते हैं टूटे सपने...
उमंगें अब बर्फ सी ठंडी होकर
नसों को जमा देती हैं...

Wednesday, February 2, 2011

कहाँ खो गए वो दिन....


ये वो दौर था जब हम साथ हुआ करते थे
उस दौर में दोनों स्वछन्द रहा करते थे...
कल क्या होगा इसकी फिक्र नहीं होती थी
हम आज में खुश थे और उसे ही जिया करते थे...

कई दौर आये और चले गए...
लेकिन वो दौर ना लौटा फिर कभी
लगता है की तेरे संग मेरी
ज़िन्दगी भी कहीं खो गई...

Wednesday, January 12, 2011

जीवन बीत चला...

कण कण करके मौसम का ये रितुवन बीत चला..
जीवन बीत चला...
कई दौर आये और चले गए
बिरहा में हम सदियों जले गए
प्रेम भी कुछ ऐसे ही क्षण क्षण रीत चला...
जीवन बीत चला...
सबसे आगे बढ़ना है और
राज समय पर करना है
इस लक्ष्य के पीछे नाते-रिश्ते और खुद को भी दिया जला
जीवन बीत चला...
क्या खोया और क्या पाया है
यह जोड़-तोड़ ही ज़ाया है...
श्वास की सुर लहरियों पर यौवन बीत चला...
जीवन बीत चला...
वक़्त अभी भी तेरे काबू है
जी ले जीवन को भरपूर सखा...
वरना केवल पछतायेगा कर याद अतीत का दिया जला
जीवन बीत चला...

किलकारियां ...

वहां से गुज़री आज मैं फिर
जहाँ गूंजती थीं कभी मेरी किलकारियां...
जिन गलियों में था मेरा घर और
बसती थी दोस्ती-यारियां...
जो बचपन के दिन थे, वो बड़े कमसिन थे..
हम आज भी हैं तरसते फिर झलक पाने को उनकी
वो बाली उमर भी क्या थी...
जब करते थे हम भी दिलदारियाँ....
दिलवालों की थी टोली.. जिनकी थी एक सी बोली
वो जब करते थे बातें
ना दिन ढल जाते थे और कट जाती थी रातें
आज ज़िन्दगी बंजर हो चली है
लेकिन यकीं है मुझे आनेवाली वो गली है
जब होंगी फिर बहुत सी दोस्ती और यारियां
गूंजेंगी फिर से एक दिन मेरी किलकारियां....

Udaan: धुंध छा गई ...

Udaan: धुंध छा गई ...