विचलित हो, ना जाने क्यों
यह मेरा अवसादित मन...
ढूंढ़े प्रेम प्रगाढ़, झेले विचारों की बाढ़
कभी ना पूरे हो सकने वाले
सपनों पर करता रहे चिंतन
यह मेरा अवसादित मन...
ऋतुएं जब बदले रंग,
क्षण भर को रहे उमंग
किंतु तुरंत, अकारण ही करने लगे क्रंदन
यह मेरा अवसादित मन...
स्मृतियों के घने अरण्यों में
करता रहे विचरणयह मेरा अवसादित मन...
ढूंढ़े प्रेम प्रगाढ़, झेले विचारों की बाढ़
कभी ना पूरे हो सकने वाले
सपनों पर करता रहे चिंतन
यह मेरा अवसादित मन...
ऋतुएं जब बदले रंग,
क्षण भर को रहे उमंग
किंतु तुरंत, अकारण ही करने लगे क्रंदन
यह मेरा अवसादित मन...
No comments:
Post a Comment