Friday, August 26, 2011

बंद आँखों का जहाँ...


एक मुट्ठी धूप, पाव भर छांव
गीली सी सुबह, सपनों का गांव

ताजा-ताजा अरमान, सौंधी सी ख्वाहिशें
अरमानों के दरख्तों पर लदे फूलों की खुशबू

सपनों की फुहार से गीली होती
मन की कच्ची मिट्टी...

मुझे ला दो कहीं से
एक चादर धुली सी, एक आसमां खुला सा....

Thursday, August 18, 2011

वो मेरा आज नहीं है

वो मेरा आज नहीं है और कल भी नहीं
मेरी परेशानियों का वो कोई हल भी नहीं

जिंदगी की किताब का एक पन्ना है वो
ख्वाहिशों की छांव में जन्मा सपना है वो

मेरे बस में नहीं उसको मैं दरकिनार करूं
लेकिन कोई अस्तित्व नहीं उसका जिसे स्वीकार करूं

कभी लगता है कि मेरा सरमाया है वो
तन्हाइयों में जो साथ रहे, ऐसा साया है वो

कोहरे की मोटी चादर से छनकर आता अक्स है वो
मैं उसे जानती नहीं मगर, पहचाना सा शख्स है वो

Wednesday, August 3, 2011

अहसास है वो....

सच से उसका
कोई वास्ता नहीं
मेरे मन से उत्पन्न
कयास है वो...

कोई और होता तो
छोड़ दिया होता मैंने
मगर मुझे जीवित रखने वाला
निश्वास है वो....

अकेले नहीं रहने देता
वो काफिर मुझे
सदा मेरे साथ रहने वाला
आभास है वो....

सब कहते हैं
निराधार है मेरी आशा
मगर मन की नींव में जमा
विश्वास है वो...

लाख चाहूं पर
अतृप्त ही रहता मन
अधूरी सी प्यास का
अहसास है वो...

तुम वेग मै बांध सखा...

तुम बहती धारा थे
प्रबल, सशक्त, कहीं न रुकने वाली

मैं रोक लेना चाहती थी तुम्हें
सदा के लिए अपने पास

सो बांध बन बिछ गई मैं
तुम्हारी राहों में कुछ इस कदर

के तुम मुझे लांघकर जा न सको
और रह जाओ सदा के लिए मेरे संग ही...

तुम कुछ दिनों तक शांत से रहे मेरे संग
बिताए हमने चंद खुशनुमा पल एक साथ

फिर तुम्हारा आवेग बढ़ा और आगे बढऩे को
लालायित हो एक बार फिर तुम प्रबल हो उठे

उद्दिग्न हो तुम मुझे तोड़कर आगे बढ़ चले
फिर कभी ना लौटकर आने के लिए...

और मै टूटकर बिखर गई 
तुम्हारी राहों में सदा के लिए...