Friday, August 26, 2011

बंद आँखों का जहाँ...


एक मुट्ठी धूप, पाव भर छांव
गीली सी सुबह, सपनों का गांव

ताजा-ताजा अरमान, सौंधी सी ख्वाहिशें
अरमानों के दरख्तों पर लदे फूलों की खुशबू

सपनों की फुहार से गीली होती
मन की कच्ची मिट्टी...

मुझे ला दो कहीं से
एक चादर धुली सी, एक आसमां खुला सा....

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