Monday, March 28, 2011

इस दिल का क्या करूं?

जहां थोड़ा प्यार मिले
ये वहीं अटक जाता है
ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

बंजारों सा फिरता है
प्यार मिले तो गिरता है
जल्द रूठता है लेकिन फिर
जल्दी से ये मान भी जाता है

ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

एक प्यार भरी निगाह पाकर ये
शर्माकर झिझक जाता है
लेकिन एक जगह पर ये कमबख्त
कहां देर तक टिक पाता है

कांच का बना है छोटी सी बात पर
बहुत जल्द चटक जाता है
ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

4 comments:

  1. kabhi batkne lage lage kadam ,
    ek teri yad mai ,
    bhatka hua dil phir ,
    rah mai a jata hai.



    well written..
    keep it up..

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  2. पढना शुरू किया, और पहले ही अंतरे पर 'वाह' निकला तो पढता गया...प्रभावशाली लेखन! भावपूर्ण! जारी रहिएगा!
    ---
    मैं शादी क्यों करूं...? Its All About Marriage DEBATE @ उल्टा तीर

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  3. Dhanywad amit ji... koshish karungi ki lekhan kabhi band na ho...

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  4. बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

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