Sunday, March 20, 2011

ये तेरा उपकार

प्रेम रंग मेरे जीवन में
कभी ना खिला था 
किन्तु तुमने उसे नए आयाम दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
तब कुछ दिन जीवन में उजियारा था
जब अस्तित्व पर प्रभाव तुम्हारा था
एक डूबती नौका का सहारा तुम बने
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
प्रेम नदी की हिलोरें देख 
मैं थोडा सा डर जाती थी
तब तुम कुशल तैराक से बन
मुझे खींच खींच ले जाते थे
तुमने मेरे मन से सभी डर दूर कर दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
एक लहर थी बड़ी निर्मोही
वो तुझे मुझसे दूर ले गई
लेकिन तुम जल्द लौटोगे,ये आश्वासन थे दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
तुम दूर थे लेकिन लहरों संग,सन्देश तुम्हारे आते थे
मेरे भयभीत मन को वे उत्साह से भर जाते थे
तुमने अनकहे ही मुझे, कुछ अधिकार थे दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
मैं प्रेम नदी में अकेले ही डूबती उतरती रहती थी
तुम्हारे ख्यालों से ही हरदम मैं खेलती रहती थी
लेकिन ना लौटोगे, ये तुम मुझसे कह ना सके 
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
एकदिन ऐसा भी आया जब तेरा सन्देश ना आया
मैंने तुम्हे ढूँढने की चेष्टा की, पर वैसा भी हो ना पाया
मझधार में तुम मुझे छोड़कर, किनारे जा खड़े हुए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
जब श्वासों ने भी छोड़ा साथ, 
तब समझ में आई ये बात
जिसे मैं प्रेम समझ बैठी थी
वह केवल एक खेल था तुम्हारे लिए..!
इस सीख की मैं आभारी हूँ
अब धोखा जीवन में ना खाऊँगी
मेरे अन्दर के सभी प्रेम दीप तुमने बुझा दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!!!

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