Thursday, May 10, 2012

परिंदा फिर से लौट आये...

उड़ने चला वो फिर पंख फैलाये
नए पुराने सभी दर्द बिसराए....

नई किरणों से चमकेगा एक सवेरा
पहाड़ों में कहीं सजेगा जब बसेरा....

मन को मिलेगी स्थिरता और शांति
तभी तो कहीं आएगी विचारों की क्रांति....

वो सच है, नहीं कोई फ़साना
लेकिन परिंदे को है अब उड़ जाना....

यहाँ के पत्ते बूटे रहेंगे राह बिछाये
शायद परिंदा फिर से लौट के आये... 

बस चलते जाना है..


ना हमराही है साथ,  ना मंजिल का ठिकाना है
मगर मुझे रुकना नहीं है, बस चलते जाना है..

हमसफ़र की ख्वाहिश हमें भी थी मगर
यहाँ किससे साथ चलने की उम्मीद करें..

हर शख्स यहाँ अपने दर्द  से बेदम है
हर मुस्कराहट के पीछे छिपा कोई फ़साना है...

दावा तो सभी करते हैं के हम साथ देंगे तुम्हारा
मगर जिसमे वाकई साथ देने का हो माद्दा 

इन पहचानो की भीढ़ में 
ना जाने वो इन्सान छिपा कहाँ है...

जिंदा हूँ मैं...


खुली हवा में सांस लेती हूँ तो लगता है जिंदा हूँ मैं
बढ़कर तुझे थाम लेती हूँ तो लगता है जिंदा हूँ मैं

छोटी छोटी हार कहीं मार देती है मुझे
हौसला तुझसे मिलता है तो लगता है जिंदा हूँ मैं

ये शोर, कत्लेआम और घिनौनी साजिशें
इनके बीच तुझे देख लेती हूँ तो लगता है, जिंदा हूँ मैं...

मेरे अन्दर का विश्वास...

वहीँ कहीं छुपा बैठा था मेरे अन्दर का विश्वास
मुझे लगा था जैसे खो दिया हो मैंने उसे, 
हमेशा के लिए....
आँख मिचौली खेलता है वो मेरे साथ हर वक़्त
जानती हूँ जबकि की वो लौट आएगा आखिर में...
फिर भी उसके खो जाने का डर 
सताता है मुझे हर बार
और मेरे अन्दर सबकुछ 
दरकने लगता है धीरे धीरे...
मगर इस बार मैं इस डर को डरा दूंगी
क्योंकि जानती हूँ की 
इस बार भी मेरा विश्वास लौट आएगा...

चिट्ठी सी वो याद...

एक पुरानी चिट्ठी की सी याद 
अब भी कहीं मन की तिजोरी में छिपा रखी है...
उस याद को गाहे बगाहे चुपके से 
तिजोरी से निकालती हूँ एक चोर की तरह... 
मन ही मन उसपर हाथ फेरकर
उसे ताज़ा करने की कोशिश करती हूँ....
हाँ, उस कोशिश में पुराने होते कुछ पल
तड़ककर गिर जाते हैं कहीं 
और फिर ढूंढे नहीं मिलते...
मैं जितना उसे सहेजकर रखना चाहती हूँ
हर बार उस याद से 
कुछ कम होता चला जाता है....

मतलबी दुनिया

किसी को गाडी-बंगला-कार चाहिए
किसी को ताकत-पैसा-सरकार चाहिए

कोई आगे बढ़ने को सियासत करे
कोई बनके मजलूम बगावत करे

कोई मारे सबको तीरों तलवार से
कोई करे हलकान शब्दों के वार से..

दुनिया में अब बसती सिर्फ तकरार है
सभी भूल बैठे होता क्या प्यार है....


Wednesday, February 15, 2012

....कुछ और चाहिए

थोडा सुकून चाहिए थोडा आराम चाहिए
मुझे ज़िन्दगी में अब एक मुकाम चाहिए...

सुबह की भाग दौड़ थका देती है मुझे
तेरे संग बिता सकूँ वो शाम चाहिए...

मशीनी ज़िन्दगी है, ना दिल है ना जज्बात
फिर से इंसा बन सकूँ ये इनाम चाहिए...

सुनहरी किताब में कहीं ज़िक्र नहीं मेरा
मुझे मेरे हिस्से का वहां नाम चाहिए

मेरे हिस्से के गम तो तुने दे दिए खुदा
अब मुझे मेरे हिस्से की खुशियाँ तमाम चाहिए....

वो मोहब्बत नहीं है...

मोहब्बत ज़िन्दगी है या सिर्फ एक सजा है
ये वो दौर है जिसमे चोट खाने में भी मज़ा है
सच्चों के लिए ये दो दिलों का मेल है
झूठों के लिए ये महज़ एक खेल है
रंग रूप बदला हो भले ही इसका
मगर आज भी पैमाना वही है
जो आग के दरिया से ना गुज़रे
वो मोहब्बत नहीं है...

कहते इसे मोहब्बत हैं...

दिल की सरसराहट है वो
और है वो जिस्म की तपिश

वो मीठा सा दर्द भी है
और है सीने की खलिश

जो हकीकत में तब्दील हो रहा
यही है वो अफसाना

यहाँ ज़िन्दगी सजा लगे
और मौत बने नजराना

ये वो जज्बा है जिसमे
बला की शिद्दत है

नाम तो बहुत है इसके मगर
कहनेवाले कहते इसे मोहब्बत हैं...

Saturday, February 11, 2012

उस मुलाकात का असर अब भी है

उस मुलाकात का असर अब भी है
मेरे हिस्से में सहर अब भी है

पेशानी की लकीरों में कुछ तो बात होगी
के हम पर ज़िन्दगी की नज़र अब भी है

पेचीदगियों में उलझने का गिला नहीं मुझे
मेरे घर में सुकून का बसर अब भी है

मंजिल मिल ही गई तो फिर रुकना होगा
शुक्र है मेरे हिस्से में सफ़र अब भी है...

खुदा हो जाऊं अगर हर डर पे फतह हासिल कर लूं
मैं इंसा हूँ, मुझमे बाकी कुछ डर अब भी है...

Friday, February 10, 2012

शब्दविहीन मैं, भावनाविहीन तुम


मैं अपनी भावनाओं को शब्दों में
व्यक्त करने में असमर्थ थी

और तुममें अपने शब्दों में भावनाओं का
समावेश करने का सामर्थ्य ना था...

मेरी भावनाएं बिना शब्दों की मदद के
तुम तक पहुचने का सेतु तलाश रही थीं

और तुम्हारे शब्द भावनाओं की कमी के कारण
मुझे शूल से भेदते जा रहे थे...

शब्दों की लम्बी खोज में मैंने
तुम तक पहुचने में देर कर दी

और तुम भी भावनाओं के अभाव में
खोखले शब्दों के जाल में उलझकर रह गए...

Friday, January 27, 2012

आओ बसंत

आओ बसंत, छाओ बसंत
तुम सबका मन गुदगुदाओ बसंत!!

मुरझाये हृदयों को तुम
चुपके से खिलाओ बसंत!!!

जीवन की सुन्दरता को बिसरा बैठे जो
तुम उन्हें सुन्दरता का आभास कराओ बसंत!!

तुम ऋतुओं के राजा हो
अपनी प्रजा को थोडा हँसाओ बसंत!!!

आशा विहीन इन लोगो के
मन को भी तो महकाओ बसंत...!!!