Thursday, May 10, 2012

परिंदा फिर से लौट आये...

उड़ने चला वो फिर पंख फैलाये
नए पुराने सभी दर्द बिसराए....

नई किरणों से चमकेगा एक सवेरा
पहाड़ों में कहीं सजेगा जब बसेरा....

मन को मिलेगी स्थिरता और शांति
तभी तो कहीं आएगी विचारों की क्रांति....

वो सच है, नहीं कोई फ़साना
लेकिन परिंदे को है अब उड़ जाना....

यहाँ के पत्ते बूटे रहेंगे राह बिछाये
शायद परिंदा फिर से लौट के आये... 

3 comments:

  1. रचना अच्छी है ..मन में उठते विचारों को शब्द देने का अच्छा प्रयास है..साधुवाद.

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