एक पुरानी चिट्ठी की सी याद
अब भी कहीं मन की तिजोरी में छिपा रखी है...
उस याद को गाहे बगाहे चुपके से
तिजोरी से निकालती हूँ एक चोर की तरह...
मन ही मन उसपर हाथ फेरकर
उसे ताज़ा करने की कोशिश करती हूँ....
हाँ, उस कोशिश में पुराने होते कुछ पल
तड़ककर गिर जाते हैं कहीं
और फिर ढूंढे नहीं मिलते...
मैं जितना उसे सहेजकर रखना चाहती हूँ
हर बार उस याद से
कुछ कम होता चला जाता है....
अब भी कहीं मन की तिजोरी में छिपा रखी है...
उस याद को गाहे बगाहे चुपके से
तिजोरी से निकालती हूँ एक चोर की तरह...
मन ही मन उसपर हाथ फेरकर
उसे ताज़ा करने की कोशिश करती हूँ....
हाँ, उस कोशिश में पुराने होते कुछ पल
तड़ककर गिर जाते हैं कहीं
और फिर ढूंढे नहीं मिलते...
मैं जितना उसे सहेजकर रखना चाहती हूँ
हर बार उस याद से
कुछ कम होता चला जाता है....
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