Monday, March 28, 2011

इस दिल का क्या करूं?

जहां थोड़ा प्यार मिले
ये वहीं अटक जाता है
ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

बंजारों सा फिरता है
प्यार मिले तो गिरता है
जल्द रूठता है लेकिन फिर
जल्दी से ये मान भी जाता है

ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

एक प्यार भरी निगाह पाकर ये
शर्माकर झिझक जाता है
लेकिन एक जगह पर ये कमबख्त
कहां देर तक टिक पाता है

कांच का बना है छोटी सी बात पर
बहुत जल्द चटक जाता है
ये दिल तो आवारा है
हर मोड़ पे भटक जाता है

Saturday, March 26, 2011

यूं तो मौसम उजला था

यूं तो मौसम उजला था
पर मन में सबकुछ धुंधला था

कोयल कूक रही थी बागों में
सब डूब रहे थे अनुरागों में
मैं ही केवल थी एक व्यथित
अवसादों से घिरी और ग्रसित

चाहकर भी मेरे अंदर का
मौसम अभी ना बदला था

एक रोज सुबह थी अलसाई
दूर एक किरण दी दिखलाई
उसने कुछ पल के लिए
मन में आशा की अलख जगाई

किंतु समय ने हर बार ही
मेरे मन को कुचला था

मैंने आज समय को जाना है
उसका क्रूर रूप पहचाना है
जो आज साथ है वह कल नहीं
इस बात को भी मैंने माना है

किंतु अतीत को पाने की
इच्छा से व्यक्तित्व कुछ दहला था
यूं तो मौसम उजला था
पर मन में सबकुछ धुंधला था...

Monday, March 21, 2011

बेरंग हुए रंग...


गुम हुईं ढेरों आशाएं
हीन हो गईं सभी दिशायें
रंग मिले सभी, बस मिला नहीं 
वो रंग जिससे
बेरंग मन भी रंग रंग जाये...!!!
बीत गई देखो ये होली
ख़त्म हुई सब हंसी ठिठोली
जिसके रंग में रंगने को
था आतुर मन
लौट के आया ना वह हमजोली...

Sunday, March 20, 2011

ये तेरा उपकार

प्रेम रंग मेरे जीवन में
कभी ना खिला था 
किन्तु तुमने उसे नए आयाम दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
तब कुछ दिन जीवन में उजियारा था
जब अस्तित्व पर प्रभाव तुम्हारा था
एक डूबती नौका का सहारा तुम बने
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
प्रेम नदी की हिलोरें देख 
मैं थोडा सा डर जाती थी
तब तुम कुशल तैराक से बन
मुझे खींच खींच ले जाते थे
तुमने मेरे मन से सभी डर दूर कर दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
एक लहर थी बड़ी निर्मोही
वो तुझे मुझसे दूर ले गई
लेकिन तुम जल्द लौटोगे,ये आश्वासन थे दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
तुम दूर थे लेकिन लहरों संग,सन्देश तुम्हारे आते थे
मेरे भयभीत मन को वे उत्साह से भर जाते थे
तुमने अनकहे ही मुझे, कुछ अधिकार थे दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
मैं प्रेम नदी में अकेले ही डूबती उतरती रहती थी
तुम्हारे ख्यालों से ही हरदम मैं खेलती रहती थी
लेकिन ना लौटोगे, ये तुम मुझसे कह ना सके 
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
एकदिन ऐसा भी आया जब तेरा सन्देश ना आया
मैंने तुम्हे ढूँढने की चेष्टा की, पर वैसा भी हो ना पाया
मझधार में तुम मुझे छोड़कर, किनारे जा खड़े हुए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!
जब श्वासों ने भी छोड़ा साथ, 
तब समझ में आई ये बात
जिसे मैं प्रेम समझ बैठी थी
वह केवल एक खेल था तुम्हारे लिए..!
इस सीख की मैं आभारी हूँ
अब धोखा जीवन में ना खाऊँगी
मेरे अन्दर के सभी प्रेम दीप तुमने बुझा दिए
ये तेरा उपकार था प्रिये...!!!

Monday, March 7, 2011

ये पानी...

ये पानी जब मेरी आँख से बहता है
तो दिल के ज़ख्मों को एक मरहम सा मिलता है
लोग इसे मेरी कमजोरी समझ लेते हैं
लेकिन इनसे मेरी ताकत को हौसला मिलता है

हर वक़्त ज़माने से लड़ते लड़ते
जब थक जाती हूँ मैं
यही वो पानी है जो सुकून देने के वास्ते
मेरे ज़ख़्मी रूह पर अब्र बनकर बरसता है

ये पानी धो देता है हर शिकवा शिकायत और गम
इस पानी से मेरा रूप और निखर उठता है
गंगा जल सा शुद्ध है ये पानी
जो मुझे लड़ने और बढ़ने की हिम्मत देता है...