Thursday, November 3, 2011

मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी...

सागर हूं मैं 
मेरा मंथन करता है समय
कभी विषाक्त हो जाती हूं
तो कभी धन-धान्य बरसाती हूं
मुझे विश्वास है कि एक दिन
मैं अमृत बन भी बहूंगी
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी...

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