गिरना, उठना, उठकर संभलना
संभलकर आगे बढऩा ही सही है
जो ऐसा कर पाए
सच्चा इंसान वही है...
भूल हुई मुझसे अनेक
पर अब भी संग है मेरा विवेक
राह नई जरूर है पर मंजिल वही है
जो निरंतर चलता जाए इंसान वही है....
उम्मीद टूटी है मगर,
हौसला बरकरार है
किनारे पर जरूर पहुंचेगा
जो अभी फंसा मझधार है
दूसरों की तरह ही
ऊपरवाले ने मेरी भी किस्मत लिखी है
जो उसपर भरोसा कर बढ़ता जाए
सच्चा इंसान वही है....
संभलकर आगे बढऩा ही सही है
जो ऐसा कर पाए
सच्चा इंसान वही है...
भूल हुई मुझसे अनेक
पर अब भी संग है मेरा विवेक
राह नई जरूर है पर मंजिल वही है
जो निरंतर चलता जाए इंसान वही है....
उम्मीद टूटी है मगर,
हौसला बरकरार है
किनारे पर जरूर पहुंचेगा
जो अभी फंसा मझधार है
दूसरों की तरह ही
ऊपरवाले ने मेरी भी किस्मत लिखी है
जो उसपर भरोसा कर बढ़ता जाए
सच्चा इंसान वही है....
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