मुज़तरिब हूं, ऐसे ना परेशां करो यारों
मेरे दर्द को समझो, थोड़े तो मेहरबां बनो यारों...
मेरी आशिकी ने जख्म बड़े दिए मुझको
उन जख्मों को तुम अब ना कुरेदो यारों...
इज़तेराब ये है के उसे ख्याल नहीं मेरे जज्बातों का
मेरी इस तकलीफ की कुछ तो दवा करो यारों ...
तल्खी है उसके लफ्ज़ों में, नज़रों में हिकारत है
मेरे पाक इरादों को उससे बयां करो यारों...
उन्हें लगता है कि हम दिल्लगी सी करते हैं
अपनी संजीदगी का अहसास कैसे उसे दिलाऊं यारों...
लगता है के मेरी मौत ही से यकीं आएगा उनको
मेरे जनाज़े को उनके झरोखे के नीचे से ले जाना यारों...
मेरे दर्द को समझो, थोड़े तो मेहरबां बनो यारों...
मेरी आशिकी ने जख्म बड़े दिए मुझको
उन जख्मों को तुम अब ना कुरेदो यारों...
इज़तेराब ये है के उसे ख्याल नहीं मेरे जज्बातों का
मेरी इस तकलीफ की कुछ तो दवा करो यारों ...
तल्खी है उसके लफ्ज़ों में, नज़रों में हिकारत है
मेरे पाक इरादों को उससे बयां करो यारों...
उन्हें लगता है कि हम दिल्लगी सी करते हैं
अपनी संजीदगी का अहसास कैसे उसे दिलाऊं यारों...
लगता है के मेरी मौत ही से यकीं आएगा उनको
मेरे जनाज़े को उनके झरोखे के नीचे से ले जाना यारों...
very nice ....
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