सावन की रिमझिम फुहार सी है तुम्हारी याद
जो कुछ ऐसे बरसती है मेरे प्यासे मन पर
कि बाहर कुछ बहता नहीं है और
अंदर सब जज्ब होता चला जाता है...
तुम्हारी याद कभी तेज़ बारिश भी बन जाती है
जब मन की नदी भर जाती है तुम्हारी याद से
तो सारे बांध तोड़ते हुए यह याद
आंखों से बरसने लगती है बेतहाशा...
और कभी यही याद इतनी मूसलाधार हो जाती है
के मुझे अपने साथ अतीत के भंवर में बहा ले जाती है
जहां मैं डूबती-उतरती रहती हूं, तब तक
जब इन यादों के काले बादलों को चीरकर उम्मीदों का नया सूर्य नहीं चमकता....
very nice...
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