मेरा वजूद मेरी ही नज़रों से ओझल हुआ जाता है
कुछ इस कदर खुद ही में गुमशुदा हूँ मैं... कभी कभी सोचती हूँ की उन गैरों से मेरा क्या नाता है
जिनके जाने से थोड़ी ग़मज़दा हूँ मैं...
बरसों इश्क की वादियों में जो गूंजती रही
इश्क की ऐसी ही सदा हूँ मैं...
मेरे राज़ कुछ ऐसे नहीं के ज़माने में बयां हो जाएँ
कोई और नहीं खुद अपनी राजदार हूँ मैं...
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