घोंसलों में छिपी चिडिय़ा
बाहर निकलकर चहचहाएगी
मुर्गे की बांग दूर से सुनकर
मां किवाड़ खोल मुस्काएगी
आदित्य के तेज के आगे
सयाह रात थर्राएगी
अंधियारे पर लहराने विजय पताका
वह सुबह फिर आएगी...
भोर की लालिमा देखकर पंछी
दाना-पानी लेने जाएंगे,
निश्चित व निर्भय होकर वे
अपनी मंजिल को पाएंगे...
रात के अंधियारे में पथिक
घबरा मत खोने के डर से
अंधेरा नहीं कर सकता तुझे
दूर अपनी मंजिल से...
कुछ देर ठहर और इंतजार कर
रात तो बस अब ढल जाएगी
मंजिल होगी नजरों के सामने
वह सुबह जल्द ही आएगी...
बाहर निकलकर चहचहाएगी
मुर्गे की बांग दूर से सुनकर
मां किवाड़ खोल मुस्काएगी
आदित्य के तेज के आगे
सयाह रात थर्राएगी
अंधियारे पर लहराने विजय पताका
वह सुबह फिर आएगी...
भोर की लालिमा देखकर पंछी
दाना-पानी लेने जाएंगे,
निश्चित व निर्भय होकर वे
अपनी मंजिल को पाएंगे...
रात के अंधियारे में पथिक
घबरा मत खोने के डर से
अंधेरा नहीं कर सकता तुझे
दूर अपनी मंजिल से...
कुछ देर ठहर और इंतजार कर
रात तो बस अब ढल जाएगी
मंजिल होगी नजरों के सामने
वह सुबह जल्द ही आएगी...
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