Saturday, May 28, 2011

वह सुबह फिर आएगी

घोंसलों में छिपी चिडिय़ा
बाहर निकलकर चहचहाएगी
मुर्गे की बांग दूर से सुनकर
मां किवाड़ खोल मुस्काएगी

आदित्य के तेज के आगे
सयाह रात थर्राएगी
अंधियारे पर लहराने विजय पताका
वह सुबह फिर आएगी...

भोर की लालिमा देखकर पंछी
दाना-पानी लेने जाएंगे,
निश्चित व निर्भय होकर वे
अपनी मंजिल को पाएंगे...

रात के अंधियारे में पथिक
घबरा मत खोने के डर से
अंधेरा नहीं कर सकता तुझे
दूर अपनी मंजिल से...

कुछ देर ठहर और इंतजार कर
रात तो बस अब ढल जाएगी
मंजिल होगी नजरों के सामने
वह सुबह जल्द ही आएगी...

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