Wednesday, January 12, 2011

किलकारियां ...

वहां से गुज़री आज मैं फिर
जहाँ गूंजती थीं कभी मेरी किलकारियां...
जिन गलियों में था मेरा घर और
बसती थी दोस्ती-यारियां...
जो बचपन के दिन थे, वो बड़े कमसिन थे..
हम आज भी हैं तरसते फिर झलक पाने को उनकी
वो बाली उमर भी क्या थी...
जब करते थे हम भी दिलदारियाँ....
दिलवालों की थी टोली.. जिनकी थी एक सी बोली
वो जब करते थे बातें
ना दिन ढल जाते थे और कट जाती थी रातें
आज ज़िन्दगी बंजर हो चली है
लेकिन यकीं है मुझे आनेवाली वो गली है
जब होंगी फिर बहुत सी दोस्ती और यारियां
गूंजेंगी फिर से एक दिन मेरी किलकारियां....

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