कभी कभी सोचती हूँ के
गर अँधेरा अगर नहीं होता...
तो सूरज की अहमियत शायद
कोई नहीं समझता...
महरूम रह जाते सब
चांदनी के सुकून से
और जुगनू की चमक में
दिल मेरा नहीं खोता...
कभी कभी सोचती हूँ के
गर अँधेरा नहीं होता...
तो प्यार का वो अनोखा रंग
कहीं छुप जाता दिन के उजाले में
सुनहरी धुप तो मिलती
मगर तारे नहीं सजते आसमा के शामियाने में...
और कई सपने भी आँखों में
कतरा जाते आने से...
जुदा लगते हैं रात और दिन
मगर वो एक दूजे के बिन अधूरे हैं
दोनों की अपनी अहमियत है..
ज़िन्दगी में जिनकी ये दोनों हैं, वही पूरे हैं...
बहुत खुब...
ReplyDeletethanks sachin...
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