ये मौसम की नजाकत है या कुछ और
के दिल में जागे हैं अरमां कुछ नए से...
यूं तो हर बात कही सुनी है हमने मगर
कुछ जज्बात अब भी हैं अनकहे से...
कभी ऐसा भी था कि जबां रुकती न थी अपनी
अब लरजने लगे हैं होंठ कुछ भी कहने से...
पलकों को उठाने की हिम्मत नहीं होती
इनमें बंद हैं चंद हसीं ख्वाब नए से..
कुछ ऐसा जादू किया है फिजाओं ने हम पर
लोग कहते हैं कि हम भी लगे हैं कुछ बदलने से...
के दिल में जागे हैं अरमां कुछ नए से...
यूं तो हर बात कही सुनी है हमने मगर
कुछ जज्बात अब भी हैं अनकहे से...
कभी ऐसा भी था कि जबां रुकती न थी अपनी
अब लरजने लगे हैं होंठ कुछ भी कहने से...
पलकों को उठाने की हिम्मत नहीं होती
इनमें बंद हैं चंद हसीं ख्वाब नए से..
कुछ ऐसा जादू किया है फिजाओं ने हम पर
लोग कहते हैं कि हम भी लगे हैं कुछ बदलने से...
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