Thursday, April 28, 2011

आशाओं का बोझ

निर्भय होकर वही करो
जो करने को मन कहता है
यह ज्ञान मिला मुझे जीवन से
जो मेरे अंदर बहता है...

पर आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

कहां जाऊं किस ओर बढूं
मन की सुनूं या सूली चढूं
एक पथ चुनते ही दूजे का
क्रंदन सुनाई पड़ता है

आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

दोनों पथ एक दूजे की ओर
पीठ किए खड़े
मन कहता एक ओर चलूं
दूजे की सलाह देते बड़े

मैं उन्हें समझा न सकी
और न कोई मेरी बात समझता है
आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

समाज कहता मात-पिता की सेवा कर
वे कहते गूृहस्थी की गाड़ी चढ़
मेरे मन की व्यथा से मगर
किसी का दिल न दुखता है

आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

मन करता है स्वच्छंद रहूं
अपने मन का मीत चुनुं
तब तक जीवन चले वैसे ही
जिस गति से यह अब चलता है

पर आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

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