ज़िंदगी कभी आर कभी पार चली जाती है
कभी यूँ ही मझदार में बिछड़ जाती है
ख्वाबों से सजी लगती है ये दुल्हन मुझको
पलकों की कश्ती में सवार चली जाती है
अनगिनत रंगो का खज़ाना है ये
हर बार मुझे नए रंग में सराबोर कर जाती है
मैं चाहती हूँ ज़िंदगी को बहार कि तरह
वो जब भी आती है तो फ़िज़ा गुलज़ार कर जाती है...
कभी यूँ ही मझदार में बिछड़ जाती है
ख्वाबों से सजी लगती है ये दुल्हन मुझको
पलकों की कश्ती में सवार चली जाती है
अनगिनत रंगो का खज़ाना है ये
हर बार मुझे नए रंग में सराबोर कर जाती है
मैं चाहती हूँ ज़िंदगी को बहार कि तरह
वो जब भी आती है तो फ़िज़ा गुलज़ार कर जाती है...
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