Wednesday, January 12, 2011

जीवन बीत चला...

कण कण करके मौसम का ये रितुवन बीत चला..
जीवन बीत चला...
कई दौर आये और चले गए
बिरहा में हम सदियों जले गए
प्रेम भी कुछ ऐसे ही क्षण क्षण रीत चला...
जीवन बीत चला...
सबसे आगे बढ़ना है और
राज समय पर करना है
इस लक्ष्य के पीछे नाते-रिश्ते और खुद को भी दिया जला
जीवन बीत चला...
क्या खोया और क्या पाया है
यह जोड़-तोड़ ही ज़ाया है...
श्वास की सुर लहरियों पर यौवन बीत चला...
जीवन बीत चला...
वक़्त अभी भी तेरे काबू है
जी ले जीवन को भरपूर सखा...
वरना केवल पछतायेगा कर याद अतीत का दिया जला
जीवन बीत चला...

किलकारियां ...

वहां से गुज़री आज मैं फिर
जहाँ गूंजती थीं कभी मेरी किलकारियां...
जिन गलियों में था मेरा घर और
बसती थी दोस्ती-यारियां...
जो बचपन के दिन थे, वो बड़े कमसिन थे..
हम आज भी हैं तरसते फिर झलक पाने को उनकी
वो बाली उमर भी क्या थी...
जब करते थे हम भी दिलदारियाँ....
दिलवालों की थी टोली.. जिनकी थी एक सी बोली
वो जब करते थे बातें
ना दिन ढल जाते थे और कट जाती थी रातें
आज ज़िन्दगी बंजर हो चली है
लेकिन यकीं है मुझे आनेवाली वो गली है
जब होंगी फिर बहुत सी दोस्ती और यारियां
गूंजेंगी फिर से एक दिन मेरी किलकारियां....

Udaan: धुंध छा गई ...

Udaan: धुंध छा गई ...