तुम बहती धारा थे
प्रबल, सशक्त, कहीं न रुकने वाली
मैं रोक लेना चाहती थी तुम्हें
सदा के लिए अपने पास
सो बांध बन बिछ गई मैं
तुम्हारी राहों में कुछ इस कदर
के तुम मुझे लांघकर जा न सको
और रह जाओ सदा के लिए मेरे संग ही...
तुम कुछ दिनों तक शांत से रहे मेरे संग
बिताए हमने चंद खुशनुमा पल एक साथ
फिर तुम्हारा आवेग बढ़ा और आगे बढऩे को
लालायित हो एक बार फिर तुम प्रबल हो उठे
उद्दिग्न हो तुम मुझे तोड़कर आगे बढ़ चले
फिर कभी ना लौटकर आने के लिए...
और मै टूटकर बिखर गई
तुम्हारी राहों में सदा के लिए...