Monday, March 21, 2011

बेरंग हुए रंग...


गुम हुईं ढेरों आशाएं
हीन हो गईं सभी दिशायें
रंग मिले सभी, बस मिला नहीं 
वो रंग जिससे
बेरंग मन भी रंग रंग जाये...!!!
बीत गई देखो ये होली
ख़त्म हुई सब हंसी ठिठोली
जिसके रंग में रंगने को
था आतुर मन
लौट के आया ना वह हमजोली...

6 comments:

  1. kya wakai samajh me nahi aaya???

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  2. Really touching. Aise hi is field mai propgress karo. aur haan ab vo kavita bhi blog mai mention dal sukti ho.

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  3. बहुत ही खुबसुरत रचना...बहुत ही सुंदरता से लिखती है आप अपने मन के भावों को.........बस यूँही लिखती रहे..शुभकामनाएँ....

    *काव्य-कल्पना*

    *गद्य सर्जना*

    *साहित्य प्रेमी संघ*

    यदि आप हमारे "साहित्य प्रेमी संघ" पर योगदान करना चाहे....तो आपका स्वागत है..ये ब्लाग सभी साहित्यीक प्रेमीयों का है....ये दुनिया के सभी इंटरनेट अखबारों से जुड़ा हुआ है,जिससे आपकी रचना जन जन तक पहुँचेगी....अपना साहित्यीक योगदान देकर आप इस संघ को समृद्ध करे....योगदान के लिए मेरे ईमेल पर समपर्क करे...........धन्यवाद।

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  4. Khoye hue rang aapke shabdon mein ubhar aayein, Shubhkaamnayin.
    Pls remove unnecessary word verification.

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  5. utsah vardhan ke liye dhanyawad... uprokt sabhi baaton ka dhyan rakhungi..

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