Saturday, March 26, 2011

यूं तो मौसम उजला था

यूं तो मौसम उजला था
पर मन में सबकुछ धुंधला था

कोयल कूक रही थी बागों में
सब डूब रहे थे अनुरागों में
मैं ही केवल थी एक व्यथित
अवसादों से घिरी और ग्रसित

चाहकर भी मेरे अंदर का
मौसम अभी ना बदला था

एक रोज सुबह थी अलसाई
दूर एक किरण दी दिखलाई
उसने कुछ पल के लिए
मन में आशा की अलख जगाई

किंतु समय ने हर बार ही
मेरे मन को कुचला था

मैंने आज समय को जाना है
उसका क्रूर रूप पहचाना है
जो आज साथ है वह कल नहीं
इस बात को भी मैंने माना है

किंतु अतीत को पाने की
इच्छा से व्यक्तित्व कुछ दहला था
यूं तो मौसम उजला था
पर मन में सबकुछ धुंधला था...

2 comments:

  1. writing style apki bahut badiya hai,,
    keep it up........

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  2. very nice sharbani....wow!

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