Thursday, April 28, 2011

मुझे क्षितिज तक जाना है

सब कहते हैं वह मृग तृष्णा है
पर मैंने सदा उसे सच माना है
कितनी भी दूरी तय करनी पड़े
पर मुझे उसे बस पाना है

मुझे क्षितिज तक जाना है...

कठिनाईयों भरा होगा सफर
कांटों से भरी होगी लंबी डगर
किस्मत को भी साथ देने के लिए
किसी प्रकार मनाना है

मुझे क्षितिज तक जाना है

अंधकार भरी राहों में
कभी मन विचलित हो जाता है
दिशाएं भ्रम पैदा करती हैं
किस ओर बढूं समझ नहीं आता है

लेकिन मुझे अपने लक्ष्य से
आसान नहीं भटकाना है

मुझे क्षितिज तक जाना है...

आशाओं का बोझ

निर्भय होकर वही करो
जो करने को मन कहता है
यह ज्ञान मिला मुझे जीवन से
जो मेरे अंदर बहता है...

पर आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

कहां जाऊं किस ओर बढूं
मन की सुनूं या सूली चढूं
एक पथ चुनते ही दूजे का
क्रंदन सुनाई पड़ता है

आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

दोनों पथ एक दूजे की ओर
पीठ किए खड़े
मन कहता एक ओर चलूं
दूजे की सलाह देते बड़े

मैं उन्हें समझा न सकी
और न कोई मेरी बात समझता है
आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

समाज कहता मात-पिता की सेवा कर
वे कहते गूृहस्थी की गाड़ी चढ़
मेरे मन की व्यथा से मगर
किसी का दिल न दुखता है

आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

मन करता है स्वच्छंद रहूं
अपने मन का मीत चुनुं
तब तक जीवन चले वैसे ही
जिस गति से यह अब चलता है

पर आशाओं का बोझ सदा
मेरे मन पर रहता है...

Thursday, April 21, 2011

इंतजार

तुम सामने रहते हो किसी अजनबी की तरह
और मैं ढूंढ़ती रहती हूं पुराने 'तुम' को

जो कभी मेरा था और मुझसे मोहब्बत करता था
वक्त कुछ ऐसा बदला कि तुम कोसों दूर चले गए

मेरी मोहब्बत में कोई कमी ना थी
और ना ही तुम बेवफा थे

फिर क्यों हमारे रास्ते इस कदर जुदा हो गए
कि अब उनके मिलने की गुंजाइश भी नजर नहीं आती

पर दिल जो अब भी तुम्हारे लौटने की आस लिए है
कहता है बार-बार मुझको

तुम्हें भी मुझसे बेपनाह मोहब्बत है
उसे यकीन है, इक दिन तुम जरूर लौट आओगे

ये दर्द तुमने दिया है तो...

ये दर्द तुमने दिया है तो कोई बात नहीं
आंसू कुछ बहे हैं तो कोई बात नहीं

तुम तो चैन से सोते होगे रातों को
यहां नींद उड़ गई है तो कोई बात नहीं

मेरी नजरें तो हमेशा ढूंढ़ती रहेंगी तुमको
जो तुमने नजरें चुरा लीं, तो कोई बात नहीं

मेरी फितरत में नहीं किसी के आगे झुकना
जो तुमने किया है मजबूर तो कोई बात नहीं

इश्क कहते हैं कि रोग बड़ा है बुरा
जो तुमने दिया है रोग तो कोई बात नहीं

 

लौट आओ ना

तुम ऐसे गए, जैसे जिंदगी में कभी आए ही नहीं थे
लेकिन दिल उन लम्हों को बार-बार याद करता है

जो दो पल हमने साथ गुजारे
उन्हें याद करके, वक्त बर्बाद करता है

मैं जानती हूं कि अब के जो गए हो तो वापस ना ओगो
लेकिन कमबख्त दिल मुझपे हंसता है

पगला है बेचारा, जो ये समझता है
कि तुम एक दिन जरूर लौट आओगे

मैं जानती हूं कि तुम़्हारी जिंदगी में
मेरी कोई भी अहमियत बाकी नहीं

लेकिन अपने पागल दिल की खातिर तुमसे इल्तजा करती हूं
अगर जो कभी मेरी मोहब्बतमें सच्चाई नजर आई हो

तो तुम उस मोहब्बत, उस यकीन, उस पुराने वक्त के लिए ही सही
मगर, लौट आओ ना...