Tuesday, December 28, 2010

मोहे याद सतावे...

हेमंत की बयार ठिठुरन से भरी
कुदरत की अजब है कारीगरी
सर्द हवा सिहरन दे जावे
पी की मोहे याद सतावे...
आसमान में छाए बदरा
अंसुअन से भीगे है कजरा
कासे कहूँ सखी पीर जिया की
नज़र बदल गई मोरे पिया की...

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