Thursday, May 10, 2012

मेरे अन्दर का विश्वास...

वहीँ कहीं छुपा बैठा था मेरे अन्दर का विश्वास
मुझे लगा था जैसे खो दिया हो मैंने उसे, 
हमेशा के लिए....
आँख मिचौली खेलता है वो मेरे साथ हर वक़्त
जानती हूँ जबकि की वो लौट आएगा आखिर में...
फिर भी उसके खो जाने का डर 
सताता है मुझे हर बार
और मेरे अन्दर सबकुछ 
दरकने लगता है धीरे धीरे...
मगर इस बार मैं इस डर को डरा दूंगी
क्योंकि जानती हूँ की 
इस बार भी मेरा विश्वास लौट आएगा...

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