हर रिश्ता ये कहकर दूर हो गया मुझसे
के तुझमे ताक़त है खुद को हौसला देने की....
मुझे किसी कंधे का सहारा ना मि ला क्योंकि
सबको आदत थी मेरे कंधो का सहारा लेने की....
मैं वो पेड़ हूँ, जिसकी छाँव में मुसाफिर
घडी दो घडी सुस्ता लेते हैं...
मगर पेड़ किसी का हमसफ़र नहीं बनता...
सवेरा होते ही सबको जल्दी होती है मंजिल पर पहुचने की....
के तुझमे ताक़त है खुद को हौसला
मुझे किसी कंधे का सहारा ना मि
सबको आदत थी मेरे कंधो का सहारा
मैं वो पेड़ हूँ, जिसकी छाँव में मुसाफिर
घडी दो घडी सुस्ता लेते हैं...
मगर पेड़ किसी का हमसफ़र नहीं
सवेरा होते ही सबको जल्दी होती है मंजिल पर