Monday, June 20, 2011

दिल बना परवाना

कुछ कहने को हरदम मचलता है
जिस राह रोकूं, उस राह पर ही चलता है
कितना भी संभालूं, अब नहीं संभलता है
दिल मेरा अब परवाना बनके जलता है....

बंदिशों में रहकर बागी हो गया है
बंद ताले से निकलकर ये कहीं खो गया है
पत्थर था, न जाने किस अहसास से ये गलता है
दिल मेरा अब परवाना बनके जलता है...

तन्हा रहता था, कोई शोर भी ना करता था
छोटी-बड़ी हर चोट से ये डरता था
मगर अब न जाने क्यों संभाले नहीं संभलता है
दिल मेरा अब परवाना बनके जलता है...

1 comment: